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करने के लिए "जैन धर्म में कर्मसिद्धांत'' इस विषय पर समीक्षात्मक समालोचन का अभ्यास करके मेरे क्षयोपशम के अनुसार आलेखन किया है।
प्रकरण : २
आत्मा का अस्तित्व : कर्म अस्तित्व का परिचायक . इस प्रकरण में ज्ञानगुण के द्वारा आत्मा का अस्तित्व शरीरादि के भोक्ता के रूप में
आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि, उपादान कारण के रूप में आत्मा की सिद्धि, आगम प्रमाण से आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि, जहाँ कर्म वहाँ संसार, कर्म अस्त्तिव के मूलाधार पूर्वजन्म
और पुनर्जन्म प्रत्यक्ष ज्ञानियों और भारतीय मनीषियों द्वारा पूर्वजन्म की सिद्धि, ऋग्वेद, उपनिषद, भगवद्गीता में कर्म और पुनर्जन्म संकेत आदि विषयों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।
अध्यात्म की व्याख्या कर्म सिद्धांत के बिना नहीं की जा सकती। इसकी अतल गहराईओं में डुबकी लगाना मुमुक्षु के लिए अनिवार्य है। जो अध्यात्म के अंतस् की ऊष्मा का स्पर्श चाहता है। ____ जीव की क्रिया का जो हेतु है वह कर्म है, और आत्मा की राग-द्वेषात्मक क्रिया से आकाश प्रदेशों में विद्यमान अनंतानंत कर्म के सूक्ष्म पुद्गल चुंबक की तरह आकर्षित होकर आत्म प्रदेशों से संलिष्ट हो जाते हैं, वह 'कर्म' हैं।
कर्म का अस्तित्व जानने के बाद ही सच्चे अर्थ में आत्मा की उन्नति हो सकती है। प्राचीन काल से कर्म के विषय में अनेक खोजे हुई हैं। वेद, उपनिषदों में तथा प्राचीन तत्त्वचिंतक गौतमबुद्ध, भ. महावीर जैसी महान विभूतियों ने इस संबंध में अनेक प्रयत्न किये हैं। उनमें से जैनधर्म में कर्म सिद्धांत का परिशीलन प्रस्तुत प्रबंध का विषय होने से उस संबंध में आवश्यक संशोधन करने का मेरा एक प्रयत्न है।
जिस प्रकार पानी और हवा अनादि होते हुए भी उसके बिना किसी भी काल में मनुष्य का काम नहीं चलता, उसी प्रकार कर्म सिद्धांत की कल्पना अति प्राचीन होने पर भी सभी कालों में इसे समझना नितान्त आवश्यक है।
प्रकरण : ३
कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन ___ इस प्रकरण का मुख्य विषय है- कर्म प्रवाह तोडे बिना परमात्मा नहीं बनते, कर्मवाद का आविर्भाव का कारण धर्म-कर्म संस्कृति आदि का श्रीगणेश, कर्मवाद का आविर्भाव क्यों और कब? पुरुषार्थवाद की मीमांसा, कर्म शब्द के विभिन्न अर्थ-रूप, कर्म का सार्वभौम