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________________ 111 आत्मा न तो कभी उत्पन्न होती है न मरती (नष्ट होती) है, अर्थात् न तो यह कभी उत्पन्न हुई है न होगी, न होती है। शरीर के हनन किये जाने पर भी आत्मा का हनन नहीं होता।१७५ ठाणांगसूत्र१७६ में भी यह उल्लिखित है। कर्म और आत्मा में पहले कौन ? जब आत्मा अनादि है तो कर्म भी अनादि होना चाहिए, क्योंकि कर्म करने वाला तो आत्मा ही है। ऐसी स्थिति में यह ज्वलन्त प्रश्न कर्म मर्मज्ञों के समक्ष उपस्थित किया गया कि कर्म और आत्मा इन दोनों में पहले कौन है? बाद में कौन है? कर्म पहले है अथवा आत्मा? • कर्म आत्मा के साथ कब से लगे? वे पहले लगे या पीछे लगे? जैन कर्म-विज्ञान के महामनीषि तीर्थंकरों एवं तलस्पर्शी अध्येता आचार्यों ने इस प्रश्न पर युक्तिपूर्ण एवं अनुभवपूर्ण समाधान किया है कि कर्म और आत्मा इन दोनों में पहले कौन, पीछे कौन? यह प्रश्न ही नहीं उठता। पंचाध्यायी आदि ग्रंथों में स्पष्ट कहा है 'जैसे आत्मा अनादि है वैसे पुद्गल (कर्म) भी अनादि हैं। आत्मा और कर्म दोनों का संबंध भी अनादि है। आत्मा कार्मणात्मक कर्मों के साथ अनादिकाल से बद्ध होकर चला आ रहा है।१७७ 'लोकप्रकाश' में भी इस बात का उल्लेख है।१७८ ‘जैन संस्कृति के उन्नायक तीर्थंकरों तथा कर्ममर्मज्ञ आचार्यों ने कर्म पहले है या आत्मा पहले? आत्मा के साथ कर्म कब से लगे? इत्यादि प्रश्नों का युक्ति संगत समाधान मुर्गी और अंडे के उदाहरण द्वारा, तथा बीज और वृक्ष के न्याय से किया है। उन्होंने कहा कि मुर्गी और अंडा इन दोनों में पहले कौन, पीछे कौन? यदि अंडे को पहले मानते हैं तो प्रश्न होता है'मुर्गी के बिना अंडा कहा से उत्पन्न हुआ या आया? 'यदि मुर्गी को पहले मानते हैं तो प्रश्न उठेगा। अंडे के बिना मुर्गी कहा से आयी? इसी प्रकार दूसरी यह युक्ति भी प्रस्तुत की जाती है कि बीज और वृक्ष इन दोनों में पहले कौन? यदि वृक्ष को पहले मानते हैं तो प्रश्न उठेगा कि बीज बिना वृक्ष कहा से उत्पन्न हुआ? और यदि बीज को पहले मानते हैं प्रश्न उठेगा कि वृक्ष के बिना बीज कहा से आया? इसी प्रकार आत्मा और कर्म जब अनादि हैं तो प्रश्न होता है आत्मा और कर्म इन दोनों में पहले कौन हुआ? पीछे कौन? यदि आत्मा को कर्म से पहले मानते हैं तो प्रश्न उठेगा जैन दृष्टि से निश्चय नय की अपेक्षा से आत्मा विशुद्ध माना जाता है। जब आत्मा विशुद्ध है, तब उस पर कर्म कालिमा कैसे लग गई? शुद्ध आत्मा पर कर्म लगना ही नहीं चाहिए। यदि शुद्ध आत्मा पर भी कर्ममल का लगना माना जाये तो कर्म मुक्त शुद्ध परमात्मा पर भी कर्ममल लग जायेगा। ऐसी स्थिति में शुद्ध आत्मा भी कर्मलिप्त होकर पुन: पुन: संसार में आवागमन
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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