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________________ णमोक्कार मंत्र की उत्पत्ति : नवकार मंत्र शब्दात्मक है। शब्द द्रव्य रुप में नित्य है, तथा पर्याय - रुपमें अनित्य है। अत: नवकार मंत्र भी द्रव्य-रुपमें नित्य माना जाता है और पर्याय रुप में अनित्य माना जाता है। द्रव्य भाषा, पुद्गलात्मक है। पुद्गल के पर्याय अनित्य हैं इसलिए भाषा के पुद्गल भी अनित्य हैं किंतु भाव, भाषा, जो आत्मा का क्षयोपशमात्मक रुप है, वह आत्म - द्रव्य की तरह नित्य है। __ श्री नवकार मंत्र द्रव्य एवं भाव दोनों दृष्टियों से शाश्वत है अथवा शब्द और अर्थ की अपेक्षा से नित्य है। जैन शास्त्रकार नवकार मंत्र को शाश्वत या अनुत्पन्न मानते हैं। वह सर्वसंग्राही नैगमनय की अपेक्षासे है। विशेषग्राही नैगम - ऋजुसूत्र तथा शब्द आदि नयों की अपेक्षा से नवकार मंत्र उत्पन्न भी माना जाता है।' नवकार मंत्र का सूक्ष्म विश्लेषण करें तो उसके शब्दात्मक, अर्थात्मक अथवा द्रव्यात्मक, भावात्मक दो रुप हैं। ____ जैन दर्शन के अनुसार श्रुत - ज्ञान की परंपरा अर्थरुपमें, भावरुपमें या तत्वरुपमें अनादि है, नित्य है।२ नवकार मंत्र श्रुत का ही प्रतीक है, इसलिए उसकी आदि नहीं है। जिसकी आदि नहीं होती, उसकी उत्पत्ति भी नहीं होती, इसलिये वह अनुत्पन्न है, शाश्वत है, नित्य है। अर्थ और भावरुपमें वह नित्य है ही जैन दर्शन अनेकांत द्वारा नित्य और अनित्य को समन्वित करता है। एक पदार्थ जो नित्य है, वह किसी अन्य अपेक्षासे अनित्य भी है। इस प्रकार अपेक्षा - भेद से नित्यत्व और अनित्यत्व - दोनों एक ही पदार्थ में सिद्ध होते हैं। जिसके नवपदोंमें क्रियामें भेद है, अथवा जिसके गिननेकी नव क्रियायें है उसे नवकार कहते हैं। इसलिए नमस्कार महामंत्र का दूसरा नाम नवकार मंत्र भी है। "नवसु पदेसु कारा: क्रिया: यस्मिन् स नवकारः।" जैन धर्म का महामंत्र : नवकारः आदि प्रयोग धर्म यह सुख का भंडार है । जो वीतराग भाषित धर्म को समझकर भी यहाँ-वहाँ अपनी बुद्धी भ्रमित करता है वह सचमें ही अज्ञान है। धर्म की श्रेष्ठता, प्रशस्तता, और स्वपर कल्याण की भावनामें वृद्धि होगी, उतनी ही धर्म में रुची होगी। यह रूची गति का रुप लेकर प्रगती करके धर्म शिखर पहुँचायेगी। (६६)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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