________________
निष्कर्ष : __ इस प्रकरणमें जैन संस्कृति, धर्म, आगम तथा श्वेतांबर, दिगम्बर साहित्य का संक्षेपमें विवेचन किया गया है। साहित्य की विशदरुपमें चर्चा करने का एक विशेष प्रयोजन है इस साहित्य में तत्वज्ञान, आचार, व्रतपरंपरा, साधना की विविध पद्धतियाँ, तपश्चरण, स्वाध्याय, ध्यान इत्यादि अनेक विषय अनेक दृष्टियोंसे व्याख्यात हुए हैं। किसी भी विषयपर गहन अध्ययन, अनुशीलन और अनुसंधान के लिये तत्संबंधी संस्कृत, दर्शन और साहित्य का आधार बहुत आवश्यक है।
नवकार महामंत्र का साधुपद जैन धर्म के केंद्र में प्रतिष्ठित है।
आगमों और सिद्धांत ग्रंथोंमें धर्मका जो व्रतमय स्वरुप वर्णित हैं वह एक साधु के जीवन में मूर्तिमान होता है। साधु के स्वरुप, उनकी साधना की सूक्ष्मतम भूमिका,कठोर त्याग, वैराग्य के कारण उसकी पवित्रता और पूजनीयता आदि पर गहन अनुशीलन और अनुसंधान के लिये जैन आगम और साहित्य का आलंबन सर्वथा आवश्यक है।
मेरे द्वारा शोध हेतू स्वीकृत 'नमो लोए सव्व साहूणं' विषय पर अनुसंधेय सामग्रीकी दृष्टि से इन सबका उपयोग आवश्यक होगा। अत: इन सब पर सामान्य रुपमें प्रकाश डालना अपेक्षित मानते हुए इस प्रकरण में इन सबका संक्षेप में निरुपण किया गया है। जो आगे के प्रकरणोंमें विवेचनीय, गवेषणीय और परीक्षणीय विषयों की दृष्टिसे अनुकूल पृष्ठभूमि सिद्ध होगी।
(५९)