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वर्णन है। यह दो श्रुत स्कंधों में विभाजित है । इसमें १७३ गाथायें है ।
प्रथम श्रुत स्कंधमें छह द्रव्यों और पाँच अस्तिकायों का विवेचन है । इसमें द्रव्य का लक्षण, उसके भेद, स्यादवाद के सात भंग, गुण, पर्याय, काल, द्रव्य का स्वरुप, जीव का लक्षण, सिद्धों का स्वरुप, जीव एवं पुद्गलका बंध जीवस्तिकाय पुद्गलास्तिकाय, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय तथा काल के लक्षण आदि का प्रतिपादन किया गया है ।
द्वितीय श्रुतस्कंधमें जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा बंध एवं मोक्ष का विवेचन है। आचार्य अमृतचंद्र सुरि तथा आचार्य जयसेनने संस्कृतमें टीकाओं की रचना की ।
प्रवचनसार :
आचार्य कुंदकुद का यह दूसरा महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । इसमें तीन श्रुतस्कंध हैं । प्रथम श्रुतस्कंध में ज्ञान का, द्वितीयश्रुत स्कंधमें ज्ञेयका और तृतीय श्रुतस्कंध में चारित्र का प्रतिपादन है । इसमें कुल दो सौ पचहत्तर (२७५) गाथायें हैं।
इसके प्रथम श्रुतस्कंध के ज्ञानाधिकार में आत्मा और ज्ञानका एकत्व एवं अन्यत्व, सर्वसत्व की सिद्धि, इंद्रिय सुख और अतिंद्रिय सुख, शुभोपयोग, अशुभोपयोग तथा शुद्धोपयोग, मोहक्षय आदि का निरुपण है ।
दूसरे श्रुतस्कंध गेय अधिकारमें द्रव्य गुण एवं पर्याय का स्वरुप, ज्ञान, कर्म, कर्म का फल, मूर्त-अमूर्त द्रव्यों के गुण, जीव और पुद्गल का संबंध, निश्चय और व्यवहार नयका विरोधाभाव, शुद्धात्माका स्वरुप आदि का विश्लेषण है।
तृतीय श्रुतस्कंध चारित्राधिकार में श्रामण्यके चिन्ह, लक्षण, उत्सर्ग मार्ग, अपवाद मार्ग, आगमज्ञान का महत्त्व, श्रमण का लक्षण, मोक्षतत्व आदि विषयों का प्ररूपण है । इस ग्रंथ पर भी आचार्य अमृतचुद्रु सूरि तथा आचार्य जयसेन सुरि द्वारा रचित टीकायें हैं ।
समयसार :
समय का अर्थ सिद्धांत या दर्शन है । समयसारमें जैन सिद्धांत या तत्वों का विवेचन है । इसमें दस अधिकार हैं और चारसौ सेंतीस (४३७) गाथायें है। प्रथम अधिकारमें स्वसमय, परसमय, शुद्धनय, आत्मभावना एवं सम्यक्त्व का निरुपण है । दूसरे अधिकार में जीव, अजीव का, तीसरे में कर्म - कर्ता का, चौथे में पुण्य, पाप का पाँचवेमें आश्रव का छठ्ठे में संवर का, सातवेंमें निर्जरा का, आठवेंमें बंधका नौवें में मोक्ष का और दसवें में शुद्ध पूर्ण ज्ञान का वर्णन है। शुद्ध नयकी अपेक्षासे जीव को कर्मोंसे अस्पृष्ट और आबद्ध - बिना छुआ हुआ माना गया है।
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