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________________ ५) तंदुलवेयालिय, तन्दुलवैचारिक, प्रकीर्णक - तन्दुल का अर्थ चावल होता है, प्रस्तुत प्रकीर्णक में एक दिन में एक सौ वर्ष का पुरुष जितने तन्दुल खाता है उनकी संख्या को उपलक्षित कर यह नामकरण हुआ है। इसमें जीवों का गर्भ में आहार, स्वरुप, श्वासोश्वास का परिमाण, शरीर में संधियों की स्थिति व स्वरुप, नाड़ियों का परिमाण, रोम -कफ, पित्त, रूधिर, शुक्र आदि का विवेचन है। साथ - साथ गर्भ का समय, माता-पिता के अंग, जीव की बालक्रीड़ा आदि दस दशाएँ तथा धर्म के अध्यवसाय आदि और भी अनेक सम्बद्ध विषयों का वर्णन है। इस प्रकीर्णक में नारी का हीन रेखा चित्र भी अंकित किया है। अनेक विचित्र व्युत्पत्तियोंद्वारा नारी का कुत्सित और वीभत्स पदार्थों के रुप में चित्रित करने का अभिप्राय यही रहा हो कि मानव काम और कामिनी से भयाक्रांत हो जाये जिससे उसका उस ओर का आकर्षण ही मिट जाये। इसमें जो उपमाएँ स्त्रियों के लिए दी गई है कि स्त्री के लिए पुरुष भी उसी प्रकार हेय अंत में कहा है जन्म, जरा, मरण एवं वेदनाओं से भरा हुआ यह शरीर एक प्रकार का शकट है; अत: इसके द्वारा ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे संपूर्ण दु:खों से मुक्ति प्राप्त हो सके। ६) संथारग (संस्तारक) प्रकीर्णक ___ जैन साधना पद्धति में संथारा - संस्तारक का अत्याधिक महत्त्व है। जीवन भर में जो भी श्रेष्ठ तथा कनिष्ट कृत्य किये हो उसका लेखा - जोखा होता है और अंतिम समय में समस्त दुष्टप्रवृत्तियों का परित्याग करना, मन,वाणी और शरीर को संयम में रखना, ममता से मन को हटाकर समता में रमण करना, आत्मचिंतन करना, आहार आदि समस्त उपाधियों का परित्याग कर आत्मा को निर्द्वद्व और निस्पृह बनाना, यही संस्तारक यानि संथारे का आदर्श है। मृत्यु से भयभीत होकर उससे बचने के लिए पापकारी प्रवृत्तियाँ करना, रोते और बिलखते रहना उचित नहीं है। जैन धर्म का यह पवित्र आदर्श है जब तक जीओ तब तक आनन्दपूर्वक जीओ और जब मृत्यु आ जाये तो विवेकपूर्वक आनन्द के साथ मरो । संयम , साधना, तप की आराधना करते हुए अधिक से अधिक जीने का प्रयास करो और जब जीवन की लालसा में धर्म से च्युत होना पड़े ऐसा हो तो धर्म व संयम साधना में दृढ रहकर समाधि मरण हेतु हँसते, मुस्कराते हुए तैयार हो जाओ। मृत्यु को किसी भी तरहसे टाला तो नहीं जा (४३)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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