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१५७) उत्तराध्ययन सूत्र : (सं. मधुकर मुनि) अ.२९/३९ १५८) उत्तराध्ययन सूत्र : (सं. मधुकर मुनि) अ. २९ / ३६ १५९) जैन साहित्य का बृहद् इतिहास : (ले. प. बेचरदास जी. दोशी) पृ. १६२ १६०) त्रैलोक्य दीपक महामंत्राधिराज : )ले.भद्रंकर विजयजी) पृ. २६३-२६५ १६१) जैन धर्म में तपका महत्त्व : (श्री. चंदनमल बाबेल) लेख १२० १६२) भावना योग एक विश्लेषण : (आ. आनंदऋषिजी महाराज) पृ.३५६ १६३) शांतसुधारस : (ले. उपाध्याय, विनज विजयजी) पृ. ३२७ १६४) ध्यान - जागरण - पृ. ५५ १६५) तत्वार्थ सूत्र : (उमा स्वाति) अ. ७, सूत्र ६ १६६) क) भावनायोग एक विश्लेषण : (ले. आ. आनंदऋषीजी महाराज) पृ.३२
ख) मंगलवाणी - पृ. २७४, २७५ १६७) क) मैत्री-प्रमोद-कारुण्य-माध्यस्थानि नियोजयेत्
धर्म-ध्यान .....तस्य रसायनम् योगशास्त्र (आ. हेमचंद्र)
प्रकाश - ४ श्लोक ११७, पृ. १४४ ख) साम्यशतक (सं. डॉ. धर्मशीलाजी महाराज एम.ए.पीएचडी.साहित्यरत्न)
पृ. १० १६८) आत्मनं भावयन्नाभि ... विशुद्ध ध्यान संततीम् ॥
भावना भवनाशिनी १४ मु. (अरुणविजयजी) पृ. १० १६९) क) मैत्री परेषां हितचिंतनं........ दुष्टधियामुपेक्षा ।।
भावना भवनाशिनी (ले. मुनि अरूणोदयजी) व्या. ८ मु. पृ.२२ ख) भावना शतक :(सं. पू. डॉ. धर्मशीलाजी महाराज एम.ए. पीचडी.
साहित्यरत्न)- पृ. २५ १७०) पर हिता चिन्ता मैत्री, परदुःखविनाशिनी तथा करुणा... परदोषक्षणमुपेक्षा ।।
- भावना भवनाशिनी (मुनि. अरुण विजयजी) व्या.८ मु. पृ. १७ १७१) योगशास्त्र - ४ /११८ पृ. १४५ १७२) तत्वभावना : (आ. अमित गति) सामायिक पाठ श्लोक १
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