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________________ महामंगलममय नवकार महामंत्र विश्वके धर्मों में जैन धर्म का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । जैन धर्म अहिंसा सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अनेकांत और विश्वशांति के सर्वकल्याणकारी आदर्शोपर संप्रतिष्ठित है। प्रत्येक धर्म के अपने-अपने नमस्कार मंत्र अथवा मंगलसूत्र होते हैं ; जो श्रद्धालू धार्मिक जनों में चेतना, स्फूर्ति और ऊर्जा का संचार करते हैं। नवकारमंत्र यह जैन धर्म का महामंत्र है। यह नमस्कार रूप है, किन्तु इस महामंत्र में जैन दर्शन का तात्विक स्वरूप अत्यंत सुंदर ढंग से प्रस्तुत है। इस मंत्र में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये वंदनीय पाँच पद हैं - जिनके साथ साधना के उर्ध्वमुखी सूत्र संपृक्त है। सिद्ध पद, इस महामंत्र मे यद्यपि दूसरे स्थान पर प्रयुक्त है किन्तु वह आत्मा का परम विशुद्ध रूप है। प्रत्येक साधक का परम लक्ष्य सिद्धत्व अधिगत करना है। सिद्धत्व को प्राप्त करने के पूर्व साधुत्व स्वीकार करना आवश्यक है। साधुत्व - साधुपद को ग्रहण करने के बाद उपाध्याय पद को प्राप्त करना, आचार्य पद प्राप्त करना है। अरिहंत पद को प्राप्त कर सकते हैं और बादमें सिद्धत्व पद को याने मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं। इन सब के लिए साधुत्व स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है। इस साधुत्व पद याने “नमो लोए सव्व साहूणं" इस साधुत्व प्राप्त करने की दिशामें अग्रसर होने के लिए साधुत्व का विश्लेषण ज्ञात होना आवश्यक है कि यहाँ धर्म, संस्कृति, जैन परंपरा, आगमादि साहित्य चर्चा की जायें। साहित्य ही इसका माध्यम हैं। जिसके द्वारा साधुत्व का स्वरूप जाना जा सकता है। साथ ही साथ साधुत्व रूप का लक्ष्य विभिन्न मार्ग भी जैन वाङमय में प्रतिपादित किया गया है, जिन्हें अवगत कर साधुपद को स्वीकार करनेवाला साधक अपनी साधनामें सम्बल प्राप्त कर सकता है। अत: विश्वमें संप्रवहणशील धार्मिक स्त्रोत, उनके उद्गम विकास आदि की चर्चा करते हुए जैसा उपर उल्लेख हुआ है, जैन धर्म और साहित्य पर प्रकाश डालना नितांत आवश्यक है, जिससे यह शोध प्रबंधका विषय भली भाँति गृहीत किया जा सके। इसी दृष्टि से प्रस्तुत प्रकरण में जैन धर्म, दर्शन और साहित्य की तात्विक तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विस्तार पर प्रकाश डाला गया है।
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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