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________________ नवकार महामंत्र और विश्वमैत्री विश्वके मांगलिक मंत्रोमें नमस्कार महामंत्र परम मांगलिक और परम कल्याणकारी है । नवकार मंत्र के प्रत्येक शब्दमें साधक के अनेक जन्मों के कर्मों को नाश करनेकी शक्ति है । इस मंत्रमें विश्वमैत्री और विश्व के सभी जीवोंकी आत्मोन्नतिका वर्णन किया गया है। इस महामंत्र में धर्म या सांप्रदायिकता का जरा भी उल्लेख नहीं मिलता । नमस्कार महामंत्र के प्रथम पांच पदमें विश्वकी उत्तम पांच (परमेष्ठी) शक्ति को ही वंदन किया गया है और पंच परमेष्ठी से प्रार्थना की गई है कि - साधक में भी उत्तम गुणों का आविष्कार हो, संसार के सभी प्राणिहमारे मित्र है, किसी के साथ हमारा बैर नहीं है और न तो हम किसीका अमंगल चाहते है । वास्तव में किसीके अमंगलकी इच्छा करना हमारे अमंगलकी इच्छा करने बराबर है। जैन दर्शन स्पष्ट दर्शन है कि यहाँ कोई किसीका मित्र नहीं है और कोई किसी - शत्रु भी नही है । हे साधक ! आज इसी भव में जिसे, तु मित्र समझता है, तो शायद वह तेरा शत्रु भी हो सकता है। और जिसे तू शत्रु समझता है, अगले जनम में वह तेरा मित्र भी हो सकता है। इसलिए किसी के साथ बैर रखना या तो उसके अमंगल की प्रवृत्ति करना यह महाअनर्थकारी सिद्ध हो सकता है। नवकार मंत्र के प्रत्येक पदमें विश्वमैत्री के, मंगल भाव का भंडार भरा है। और मैत्री भावका विकास करना ही साधक का कर्तव्य हो जाता है । "Computer of Cosmic Communication” विश्व के साथ समत्त्वयोग साधने की महान प्रक्रिया नवकार मंत्र है। जैसा परमात्मा का स्वरूप है वैसा स्वरूप विश्व के जीवमात्रका है। ऐसा विश्वमैत्री का भाव नमस्कार महामंत्र नवकार में उत्पन्न होता है। नवकारमंत्रमें पूर्ण सामायिकवान, समता भावमें रमण करनेवाले को नमस्कार किया जाने के कारण नवकार मंत्र यह -Lesson of Livingness है। "जारिस सिद्ध सहावो तारिस भावो ह सव्वजीवाणं ।” “सिद्ध भगवान का जैसा स्वरूप है, वैसा ही स्वरूप विश्वके जीव मात्र में है।” १ विश्वके अगम्य, अकल्पनीय, अवर्णनीय, अचिंतनीय गुप्त रहस्योंको प्राप्त करनेकी दिव्य कला श्री नवकार मंत्र है । (Navkar is the supermost Secret Art to Cosmos.) नवकार मंत्र जैन धर्म का सर्वोत्तम मंत्र तो है ही जैन दार्शनिकों ने इस महामंत्र को चौदह पूर्वोका सार कहा है, अर्थात् इस महामंत्र में इतनी ताकत है कि पूरा जैनदर्शन यह एक ही मंत्रमें समाविष्ट हो जाता है। पूरी श्रद्धा से इस महामंत्र का स्वाध्याय, ध्यान या - (१७४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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