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समाधिमरण या सल्लेखना
यदि कोई योग्य गुरु, निर्यापक या इस प्रकरण का विशेष जानकार उपलब्ध हो तो उनकी सलाह से या स्वयं के अध्ययन के आधार से सभी निर्णय यथासमय कर लेने चाहिये।
इसबात का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि अपने परिणाम अन्त तक शुद्ध रहें, विशुद्ध रहें; संक्लेशरूप न हो।
जलादि के त्याग में ऐसी जल्दी नहीं करें कि जिसके परिणामस्वरूप अपने परिणाम विचलित हो जायें; क्योंकि परिणाम विचलित होने पर प्रतिज्ञा तो भंग हो ही जाती है।
यदि कठोरता रखने से काया की क्रिया में विकृति नहीं भी हुई तो आत्मा का क्या बचा, परिणाम तो विचलित हो ही गये। · पानी-पानी के विकल्प से परिणमित उस सेठ के पानी नहीं पीने पर भी व्रत तो भंग हो ही गया था । यदि व्रत भंग नहीं हुआ - ऐसा माने तो फिर वह सेठ बावड़ी में मेंढ़क क्यों हुआ, तिर्यंच गति में क्यों गया?
क्रिया की संभाल से अधिक महत्वपूर्ण परिणामों की संभाल है - इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिये। __सबसे बढ़िया बात तो यही है कि क्रिया और परिणाम दोनों ठीक रहें, पर यदि क्रिया की थोड़ी बहुत शिथिलता में परिणाम विशुद्ध बने रहें तो हमने बहुत कुछ बचा लिया समझो। क्रिया के चक्कर में यदि परिणाम विकृत हो गये, विचलित हो गये तो हम सब कुछ खो देंगे। ____ तात्पर्य यह है कि छोड़ा पानी पीलिया और उससे परिणाम विशुद्ध बने रहे, संक्लेश नहीं हुआ तो लाभ ही लाभ है।
अन्त समय में तो सबकुछ छोड़ना ही है; परन्तु जलादि के त्याग में जल्दी मचाने से बचना चाहिये। यही मार्गदर्शन दिया है आचार्य भगवन्तों ने।