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________________ समाधिमरण या सल्लेखना "असमर्थ श्रावकों के लिए भक्त प्रत्याख्यान की सामान्य विधि - धरिऊण वत्थत्तं, परिग्गहं छंडिऊण अवसेसं। सगिहे जिणालए वा, तिविहाहारस्स वोसरणं ॥२७१ ।। जं कुणइ गुरुसयासम्मि, सम्ममालोइऊण तिविहेण। सल्लेखणं चउत्थं, सुत्ते सिक्खावयं भणियं ।।२७२ ।। ____ -(आचार्य वसुनन्दि, वसुनन्दि श्रावकाचार, २७१-२७२) वस्त्र मात्र परिग्रह को रखकर और अवशिष्ट समस्त परिग्रह को छोड़कर, अपने ही घर में अथवा जिनालय में रहकर, जो श्रावक, गुरु के समीप मन-वचन-काय से अपनी भले प्रकार आलोचना करके, पान (जल) के सिवाय शेष तीन प्रकार के आहार का (खाद्य, स्वाद्य और लेह्य - इन तीन का) त्याग करता है; उसे उपासकाध्ययन सूत्र में सल्लेखना नाम का चौथा शिक्षाव्रत कहा गया है ।। २७१-२७२ ।। व्याध्याद्यपेक्षयाम्भोवा, समाध्यर्थं विकल्पयेत। भृशं शक्तिक्षये जह्यात्, तदप्यासन्नमृत्युकः।।६६ ॥ -(पण्डितप्रवर आशाधर, सागार धर्मामृत, ८/६६) व्याधि आदि की अपेक्षा से समाधि में निश्चल होने के लिए उस साधक को गुरु की आज्ञानुसार अथवा स्वविवेक से केवल पानी पीने की प्रतिज्ञा रख लेनी चाहिए और मृत्यु का समय निकट आने पर, जब शरीर की शक्ति अत्यन्त क्षीण हो जाए, तब उसे जल का भी त्याग कर देना चाहिए। ___ 'यदि साधक को पित्त सम्बन्धी रोग है अथवा ग्रीष्म आदि ऋतु है, मरुस्थल आदि का प्रदेश है या पित्त प्रकृति है अथवा इसीप्रकार का तृष्णा परीषह के उद्रेक को सहन न कर सकने का कोई कारण हो तो 'मैं पानी का उपयोग करूँगा' इसप्रकार का प्रत्याख्यान (त्याग) स्वीकार करे; क्योंकि उसके बिना उसकी समाधि सम्भव नहीं होगी।
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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