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________________ मान्यताओं की बात करना चाहिए, न कि बाहरी आचरण, व्यवहार या इतिहास-भूगोल संबंधी बातों की। - दूसरी बात यह है कि धार्मिक मान्यताओं को कन्फर्म करने या रिजेक्ट करने का आधार भौतिक विज्ञान को स्वीकार करना ही बड़ी भारी भूल है। आखिर आधुनिक भौतिक विज्ञान होता कौन है, धार्मिक एवं दार्शनिक मान्यताओं की परीक्षा करनेवाला? भौतिक विज्ञान की सीमा मात्र पौद्गलिक पदार्थों के परीक्षण तक ही तो है। धर्म के बारे में टिप्पणी करने का अधिकार विज्ञान को देकर हम बन्दर के हाथ में तलवार सौंपने जैसा अविवेक पूर्ण कार्य कर बैठते हैं। आखिर हमारे जीवन-मरण का निर्णय हम किसी अक्षम, अपात्र के हाथ कैसे सौंप सकते हैं ? धर्म हमारा जीवन है, हमारा स्वभाव है; उसे हम यूं ही कैसे दाव पर लगा सकते हैं ? क्या हमारा यह कृत्य, हमारा घोर अविवेक नहीं है ? इससे तो ऐसा लगता है, मानो यह आत्मा व आत्मा की व्याख्या करनेवाला यह धर्म, हमारा कुछ है ही नहीं, हमारा इससे कोई संबंध या सरोकार ही नहीं। __जिसप्रकार हम किसी लावारिस बच्चे को अनाथालय में छोड़ आते हैं; उसीप्रकार अपने इस धर्म को विज्ञान के हवाले कर हम छुट्टी पा लेना चाहते हैं। लोग कहते हैं कि आज का युग विज्ञान का युग है, और इस तथ्य से कोई इंकार भी नहीं कर सकता है। ___ यदि इसी बात को मैं अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत करूँ तो कहना चाहूँगा कि आज का युग विज्ञान नामक महामारी से संक्रमित है। दोष विज्ञान का नहीं, विज्ञान तो अपनी जगह है और जो है सो है। दोष विज्ञान के प्रति हमारे अपने दृष्टिकोण में है, वे हम हैं जो अपनी ज्ञान, संस्कार एवं संस्कृति की समृद्ध विरासत को तिलांजलि देकर विज्ञान की गोद में जा बैठे हैं, बिना सोचे-समझे, बिना विचार किये। - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/४४.
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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