________________
है। यह मात्र एक पड़ाव है। एक छोटा सा पड़ाव, मात्र तात्कालिक महत्त्व की वस्तु । हम अपने इस जीवन की व्यवस्थाओं व आयोजनों को मात्र उतना ही महत्त्व दें, जितना हम अपने किसी प्रवाह के दौरान अपने ठहरने व भोजन आदि की व्यवस्थाओं को देते हैं। उस दौरान हमारा सारा ध्यान तो हमारे प्रयोजन की ओर रहता है, अपने लक्ष्य की ओर रहता है। हम निरंतर अपने साध्य का ही चिन्तन करते हैं । उसी की बात करते हैं। उससे ही सम्बन्धित लोगों से मिलते हैं और उसी से सम्बन्धित उपक्रम करते हैं।
इस दौरान घूमने-फिरने व मौज-शौक की तो बात ही क्या, ठहरने व खाने के प्रति भी इसप्रकार विरक्त रहते हैं कि जहाँ जगह मिली ठहर गए, जब और जो मिला सो कम-से-कम समय में जल्दी-जल्दी खा लिया और फिर अपने मूल काम में लग जाते हैं।
जिसप्रकार मात्र इस वर्तमान जीवन के संदर्भ में इसप्रकार का संतुलित दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति लौकिक रूप से इस जीवन में सफल होता है; उसीप्रकार इस अनादि अनंत भगवान आत्मा के संदर्भ में इस जीवन के प्रति एक प्रवासी का सा संतुलित दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति अपने त्रिकाली लक्ष्य को पाने में सफल होता है।
यही जीवन में हमारी विजय है और यही हमारी मृत्यु पर विजय । •
-
क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/४२