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________________ सोच पर आधारित है। हमने उन विषयों पर कभी अपने स्वयं के नजरिये से विचार करने की कोशिश ही नहीं की। उल्लेखनीय तथ्य तो यह है कि हमारा वह तथाकथित परम्परागत सोच अत्यन्त विसंगतियों से भरा हुआ है। ___ जीवन और मृत्यु के सन्दर्भ में हमारा सोच, हमारा नजरिया - इस विसंगति का एक अद्भुत उदाहरण है। ___तथ्य यह है कि कोई व्यक्ति कब तक जीवित रहेगा, कोई नहीं जानता; जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है एवं एक न एक दिन मृत्यु भी होनी ही है एवं वह दिन, वह पल कभी भी आ सकता है। ___ उक्त तथ्य के आधार पर यदि हम अपने जीवन की योजना बनायें तो हमारी जीवन प्रणाली, वर्तमान जीवन प्रणाली से एकदम भिन्न होगी, भिन्न ही नहीं एकदम विपरीत होगी। ____ वर्तमान में हम मृत्यु की ओर से निश्चिन्त, मौत से बेखबर अपने लिए लम्बी-लम्बी दूरगामी योजनायें बनाते हैं और फिर उन्हें क्रियान्वित करने के लिए अपने आपको झोंक देते हैं - ऐसा करते वक्त हमारा व्यवहार, विचार व आचरण कुछ इसप्रकार का होता है मानो हम सदाकाल ही यहीं रहने वाले हैं; इसी तरह, स्वस्थ व सक्षम। मानो हम अमरता का पट्टा लिखाकर लाये हों, मानो हम कभी मरेंगे ही नहीं। ___ अपनी इसी वृत्ति को हम जिजीविषा कहते हैं, व हम सभी इसे बहुत पसन्द करते हैं, जीवन के प्रति आशावान व उत्साह से भरपूर व्यक्ति हम सभी को बहुत पसन्द होते हैं। इसप्रकार अपने आपको झोंककर हम संसार का विकास करते हैं व अपने लिए संसार का विस्तार करते हैं। ___ जब हमारी योजनायें व आयोजन ही इसप्रकार के होंगे; तब हमें जीवन में अवकाश मिलेगा ही कैसे ? न तो हमारे काम व जिम्मेदारियाँ कभी पूरी होंगी और न हमारे पास मरने की फुरसत ही होगी, और मौत की कल्पना मात्र, मौत की दस्तक मात्र हमें आतंकित करती ही रहेगी, - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/४०
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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