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________________ हास्यास्पद प्रसंग उपस्थित हो जाते हैं, जिन पर हमारा कोई नियंत्रण ही नहीं रहता। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि किसी के अत्यन्त निकट परिजन, यथा - पुत्र-पुत्री, भाई-बहिन इत्यादि कहीं दूर देश में रहते हों व अपने माता-पिता आदि की अत्यंत गम्भीर, मरणान्तक दशा का समाचार सुनकर दौड़े-दौड़े चले आये हों तो उनकी मानसिकता का विश्लेषण प्रमोदकारी हो सकता है। वे सज्जन तबियत की गम्भीरता के समाचार सुनकर अपने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कामों को बीच में ही अपूर्ण छोड़कर बिना पर्याप्त तैयारी के चले तो आए, पर अब उन्हें वापिस लौटने की जल्दबाजी तो बनी ही रहती है; क्योंकि उनका लौटना अत्यन्त आवश्यक है भी। ___ मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि किन परिस्थितियों में अब वे वापिस लौट सकते हैं ? एक तो यदि मरीज पुनः स्वस्थ हो जावे और दूसरी, मरीज की मृत्यु हो जाने पर आवश्यक जिम्मेदारियों के निर्वाह के बाद वापिस लौटा जा सकता है। __ अब यदि हम तटस्थ व गम्भीर होकर निरपेक्ष विचार करें, अपनी मनोदशा का विश्लेषण करें तो क्या निष्कर्ष निकलेगा ? आगन्तुक किस अपेक्षा के साथ दौड़ा चला आया है ? मरीज के स्वस्थ्य होने की कामना के साथ या मृत्यु की अपेक्षा के साथ ? __हालांकि हम आसानी से अपनी इस मनोदशा को स्वीकार नहीं करेंगे, पर अधिकतर मामलों में सच्चाई तो यही होती है कि आगन्तुक मृत्यु की आशा लेकर ही आते हैं; क्योंकि जबतक पुनः स्वस्थ्य होने की आशा बनी रहती है, तबतक तो वह दिन खींचता ही रहता है कि न जाना पड़े तो अच्छा हो, पर जब जीवन की आशा खत्म हो जाती है व मृत्यु निश्चित दिखाई पड़ने लगती है, तभी दौड़ता है। - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/30
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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