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परिणामों से किसी भी प्रकार प्रभावित होगा और उसे उन घटनाओं की कोई जानकारी भी न मिल पायेगी; तब उन घटनाओं के कारण सुखीदुखी होने का कोई अवसर उसे मिलेगा ही नहीं और इसप्रकार हम कह सकते हैं कि मृत्यु तो हमें वर्तमान परिस्थितियों से उबार लेने के लिए मिला एक स्वर्ण अवसर है, उन परिस्थितियों से उबरने का माध्यम ।
जिन पर नियंत्रण प्राप्त करना हमारी सामर्थ्य में था, उन पर तो हम नियंत्रण प्राप्त कर ही चुके होते हैं; पर जीते जी चाहकर भी हम जिन परिस्थितियों से व दायित्वों से मुक्त नहीं हो पाते, मृत्यु हमें उन सभी से मुक्त करके नये सिरे से एक बार फिर एक नई पारी की शुरूआत करने का अवसर प्रदान करती है, तब मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति क्योंकर मृत्यु से भयभीत हो ? मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति के सम्बन्धी अवश्य इस मृत्यु की घटना से निर्मित परिस्थितियों के उपभोक्ता बनते हैं; परन्तु यदि भावनात्मक धरातल से ऊपर उठकर विचार किया जावे तो क्या उनके लिए अपने अनेकों प्रियजनों में से एक प्रियजन की मृत्यु की घटना, जीवन में प्रतिदिन व प्रतिपल ही घटित होनेवाली अनेकों झिंझोड़ देनेवाली घटनाओं जैसी ही, उनमें से एक छोटीसी घटना मात्र नहीं है। प्रतिदिन ही तो विश्व, देश व समाज को हिला कर रख देनेवाली अनेकों घटनायें घटित होती ही रहती हैं व हम सभी उनका एक हिस्सा होने के नाते उनसे प्रभावित होते रहते हैं।
स्काईलैब गिरने की घटना या वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर हमले की घटना से यूँ तो सीधे-सीधे हमारा क्या रिश्ता है, या कि सार्स और मेडकाऊ की बीमारी भी हमें किस कोण से स्पर्श करती है, पर क्या ये घटनायें हमें अन्दर तक हिलाकर नहीं रख देती हैं, भयभीत नहीं कर देती हैं, खेदखिन्न नहीं कर देतीं हैं, क्या व्यापार के क्षेत्र की विश्वव्यापी मंदी हमें परेशान नहीं बनाये रखती, या पाकिस्तान की करतूतें व अमेरिका का रुख हमें चिन्तित नहीं करता है ? हालांकि हम सीधे-सीधे इन सबसे प्रभावित क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ? / २४