________________
के लिए अनन्त जन्मों के लिए, अपने इसी जन्म के बाकी बचे समय के लिए भी और तो और वर्तमान के लिए भी।
प्रसंगवश एक बात और स्पष्ट कर दूं कि जनसामान्य की यह धारणा कि 'जीव पूर्वजन्म के कर्मों का फल इस जीवन में भोगता है व इस जीवन के कर्मों का फल अगले जीवन में भोगेगा' पूरी तरह सही नहीं है। ___कर्मों का फल भोगने की सीमा का निर्धारण भव (योनि) के आधार पर नहीं है, वरन काल के आधार पर है। कर्मबन्ध व उदय की प्रक्रिया कुछ इसप्रकार की है कि बांधे गए कुछ कर्म बहुत समय के बाद उदय में आकर फल देते हैं व कुछ कर्म तत्काल ही उदय में आकर फल देते हैं, इसप्रकार यह जरूरी नहीं कि हमारे इस जन्म में किए गए कृत्यों का फल निश्चित तौर पर अगले जन्म में ही मिलेगा, इस जीवन में नहीं। यह एक गम्भीर व विस्तृत विषय है, जिस पर पृथक् चर्चा अभीष्ट है।
हम अपना वर्तमान जीवन शांति व सदाचार पूर्वक, पुण्य कार्य करते हुए बितायें तो हम स्वयं यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमारी मृत्यु भी मंगलमय होगी व अगला जीवन भी। अब भी अगर हमारे अन्दर मृत्यु या भावी जीवन के बारे में भय व आशंका विद्यमान रहती है तो हमें समझना चाहिए कि हमारी वर्तमान परिणति व क्रियाकलाप इतने विकृत हैं कि हम अपने स्वर्णिम भविष्य के लिए आशान्वित ही नहीं हैं या यूँ कहिए कि हम यह मानते हैं कि ऐसी परिणति के चलते हमारा भविष्य निश्चित तौर पर अन्धकारमय ही है। यदि ऐसा है तो आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने वर्तमान को इसप्रकार डिजाइन करें कि उसमें से एक सलोने स्वर्णिम भविष्य का उदय हो, हमारा वह वर्तमान जीवन ऐसा हो कि जो हमारे अनन्त भविष्य को उज्ज्वल बनाये, ऐसा आदर्श जीवन कैसा होना चाहिए ? इसकी चर्चा हम विस्तारपूर्वक एक अन्य कृति में करेंगे। ___ मृत्यु को महोत्सव बनाने के लिए जरूरी है कि हमारा सम्पूर्ण जीवन ही महोत्सवमय हो। जिनका जीवन महोत्सव होता है, उनकी
- क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/१२