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कहिए कि इतनी प्रबल नहीं होती कि मिलने का प्रयत्न किया जावे, उपक्रम किया जावे। ___इसप्रकार हम बरसों एक दूसरे से मिल ही नहीं पाते, तब भी शोक नहीं होता और तभी अचानक एक दिन समाचार प्राप्त होता है कि फलाँ व्यक्ति नहीं रहा, उसका अवसान हो गया; देहावसान; और हम आर्तनाद (पीड़ाभरी चीख) कर उठते हैं, क्यों? क्योंकि वह अब कभी नहीं मिलेगा। __ मैं पूछता हूँ तुम्हें उससे मिलने की आवश्यकता ही क्या आ पड़ी है? बीस वर्षों से तो आवश्यकता पड़ी नहीं। बीस वर्षों से तो मिले नहीं। यद्यपि मिल सकते थे, कभी भी; क्योंकि दोनों ही इसी पृथ्वी पर तो रहते आये हैं, भले ही दो अलग-अलग ध्रुवों पर ही सही; पर चाहते तो कभी भी मिल सकते थे न ? पर कभी चाहत ही न हुई। तब अब क्यों रोता है ? जो अब तक न हुआ वो अब क्यों कर होगा ? . पर नहीं ! हमें तो सभी सम्भावनाओं के दरवाजे खुले रखने हैं। हमें न मिलने का दुख नहीं होता, हमें अफसोस होता है न मिल सकने का। ____यहाँ हमारी समस्या विरह नहीं है, यहाँ हमारी व्यथा मजबूरी है, हमारा असहायपना है।
विरही तो हम वर्षों से थे, पर व्यथित नहीं थे; क्योंकि विरह हमारी बेवसी नहीं थी, हमने स्वयं उसका वरण किया था, पर आज; आज स्थिति उलट गई है, आज विरह हमारी नियति (Destiny) बन गया है, अब हम लाख चाहें, कभी मिल नहीं सकते। आज विरह हमारी मजबूरी बन गया है और यही मजबूरी हमें विचलित करती है, क्रन्दन को जन्म देती है, विरह नहीं। ___ शादी से उत्पन्न हुए विरह में भी यही तो होता है; उस विरह का वरण हम स्वयं करते हैं, अपने काल्पनिक स्वर्णिम भविष्य के सुनहरे स्वप्न संजोते हुए, और इसप्रकार शादी के फलस्वरूप सर्जित विरह हमें व्याकुल नहीं करता।
- क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/१५