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________________ का कारण नहीं हो सकता । वहाँ शोक का कारण कुछ अन्य होना चाहिए । यूँ तो सभी परिवर्तन सुनिश्चित हैं व हमारे हाथ में कुछ भी नहीं; तथापि यदि हम तुलना करेंगे तो पायेंगे कि विवाहादिक व परदेश गमनादिक के द्वारा सृजित विरह तो ऐच्छिक (Optional) हैं। हम चाहें तो उसे स्वीकार करें या इन्कार कर दें; तथापि हम स्वयं उसे स्वीकार करते ही हैं; व मृत्यु सम्बन्धी विरह तो अपरिहार्य (Unavoidable) है, उसे मेटा नहीं जा सकता और हम उसी को स्वीकार नहीं करना चाहते। यदि विरहमात्र ही दुःख का कारण है तो जिन विरह प्रसंगों को रोकना हमारे हाथ में हैं; हम उन्हें क्यों स्वीकार करते हैं ? तब विरह के तो कई अन्य प्रसंग भी जीवन में उपस्थित होते हैं। जैसे कि पुत्र व मित्रादिक अपना घर छोड़कर दूर देश में जा बसते हैं और वहाँ से बरसों तक लौटते ही नहीं हैं। जब वे एक दूसरे से बिछुड़ रहे होते हैं, वे स्वयं नहीं जानते कि अब वे कब मिलेंगे, कभी मिलेंगे भी या नहीं ? क्योंकि अब दश - पाँच वर्षों के बाद ही समीप आने-जाने का प्रसंग आ पायेगा। इन दस - पाँच वर्षों तक कौन जीवित रहेगा और कौन नहीं, कोई नहीं जानता। तब भी वे प्रसन्नतापूर्वक एक दूसरे से विदा होते हैं; क्योंकि विदाई के इस प्रसंग में विरह तो गौण है। मुख्यता है भावी जीवन के प्रति सुखद परिकल्पनाओं की । पद-प्रतिष्ठा, दौलत व सत्ता और धन व वैभव प्राप्त होंगे, घर-परिवार फलेगा - फूलेगा, इत्यादि सुखद परिकल्पनायें विरह की पीड़ा को तिरोहित कर देती हैं, गौण कर देती हैं। एक बात और है कि यद्यपि हम विरहित हो रहे होते हैं, अलग हो रहे होते हैं; तथापि विरह की अनुभूति नहीं होती, पीड़ा नहीं होती; क्योंकि एक आशा बनी रहती है कि हम चाहें तब मिल सकते हैं, एक दूसरे के पास आ-जा सकते हैं। इसप्रकार जबतक मिलने की सम्भावना बनी रहती हैं, तब तक मिलने की इच्छा भी उत्पन्न नहीं होती या यूँ क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ? / १४
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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