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तो कौन उनसे चाय-पानी की पूँछे? हो न हो आँख खोलकर उनकी ओर देखने का भी विकल्प आवे या न आवे ?
क्योंकि हमारी यह बम्बई यात्रा मौज-शौक के लिए नहीं, जगत का व्यवहार निभाने के लिए नहीं, वरन् जीवन रक्षा के लिए है। वही हमारा एक मात्र प्रयोजन है, अन्य कुछ भी नहीं; जगत की व जीवन की अन्य सभी क्रियायें, जब व जैसी स्वयमेव संचालित हों तो हों, न हों तो न हों; हम उनसे सदा निरपेक्ष ही रहते हैं।
यदि हम बम्बई आकर भी पहले अपने इलाज पर तो ध्यान न दें व इन समस्त व्यवहारों व व्यावहारिकताओं में ही उलझ जायें तो क्या होगा ?
सब व्यवहार भी यहीं छूट जावेगा व देह भी छूट जावेगी; सब कुछ छूट जावेगा, नष्ट हो जावेगा। और यदि व्यवहार में न पड़कर अपना इलाज करलें तो फिर सारा जीवन तो पड़ा है व्यवहार निभाने के लिए, घूमनेफिरने के लिए व सुविधाओं का उपभोग करने के लिए।
इसलिए मरीज के लिए तो मात्र स्वयं ही स्वयं के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है, डॉक्टर ही उसका आराध्य है व अस्पताल ही महानतम तीर्थ
और सम्पूर्ण स्वस्थ होना ही उसका एक मात्र लक्ष्य है; बाकी जगत का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य उसके लिए कुछ भी नहीं व बम्बई नगर का सारा मनोहर-सौन्दर्य उसके लिए कुछ भी नहीं।
__ अनादिकाल से भवभ्रमण के आत्मघाती महारोग से पीड़ित यह आत्मा संयोग से यह मानव पर्याय पा गया है, जिसमें इस दुष्चक्र से छूटने का पुरुषार्थ सम्भव है। यही नहीं, हम अपने इस महारोग को पहिचान भी गए हैं व दूर करने का उपाय भी उपलब्ध है, तब भी यदि हम मात्र अपने इसी जीवन की सुविधाओं का इन्तजाम करने में ही व्यस्त रहें, तत्संबंधी व्यवहारों को निभाने में ही लगे रहें; तब क्या हमारी स्थिति वैसी ही नहीं होगी, जैसी कि कैंसर का इलाज करवाने के लिए बम्बई आया मरीज, सिर्फ रहने,
- अन्तर्द्वन्द/33