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________________ अब वर्माजी वाले मामले की ही बात लीजिए। इस बात से कौन इन्कार करता है कि पड़ौस वाले वर्माजी का हमारे घर की भूमि का एक हिस्सा दबा लेना, एक अन्यायपूर्ण कदम था; तथापि क्या उस कुछ गज भूमि के टुकड़े के लिए अनेकों वर्षों तक कोर्ट में केस लड़ना व अपने उपयोग को उसमें उलझाये रखना मेरे लिए उचित था? मैंने कितनी रातें काली की हैं उन द्वेषपूर्ण विचारों में | आखिर मिला क्या ? भूमि का वह टुकड़ा तो पहले भी वहीं था, अब भी वहीं है; तब भी खाली पड़ा था, अब भी वैसा ही खाली पड़ा है। जीवन के वे कुछ वर्ष व वह महत्त्वपूर्ण समय जो किसी सार्थक चिन्तन में बीत सकता था, द्वेष के गन्दे नाले में बह गया। शायद वर्माजी द्वारा किया गया वह छोटा-सा अन्याय, मेरे स्वयं के द्वारा अपने स्वयं के प्रति किये गये अनन्त कर्मबन्धन के इस घोर अन्याय के सामने नगण्य ही ठहरता। और फिर वर्माजी का प्रकरण तो मात्र एक उदाहरण मात्र है, पर इसतरह के अनेकों प्रसंग कदम-कदम पर मेरे जीवन में आते रहे और उन्हें निमित्त बनाकर मैं निरन्तर ही आर्त - रौद्र ध्यान में व्यस्त रहा, बड़े-बड़े सैद्धान्तिक जामे पहिनाकर अपनी इसी मलिन परिणति को विभूषित करता रहा । 66 99 'अन्याय करना भी अपराध है व अन्याय सहना भी अपराध है। उक्त उक्ति का सहारा लेकर अपने हर विद्वेषपूर्ण कर्म को अन्याय के विरुद्ध अपने संघर्ष का नाम देता रहा। यदि सचमुच हम उक्त सिद्धान्त का पालन करते हैं तो हर समय क्यों नहीं, हर घटना में क्यों नहीं, हर व्यक्ति के साथ क्यों नहीं; इसी सिद्धान्त को लागू करते ? सिर्फ कहीं-कहीं ही क्यों? पर हम तो सिद्धान्तवादी नहीं, सुविधाभोगी जीवन जीते हैं, जहाँ कोई तथाकथित सिद्धान्त हमारे क्षणिक स्वार्थ का पोषण करता है, वहाँ हम सिद्धान्तवादी बन जाते हैं और किसी क्षुद्र से स्वार्थ की पूर्ति में यदि बड़े से बड़ा सिद्धान्त बाधक बनता है, तो हम उसकी भी परवाह नहीं करते हैं। जब किसी लंगड़े- लूले, अपंग-असमर्थ, बूढ़े- भिखारी को मात्र पेट अन्तर्द्वन्द / 12
SR No.002294
Book TitleAantardwand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust
Publication Year2011
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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