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________________ क्या सचमुच ही मैं अपने स्वयं के मित्रों को रोकने में अक्षम था? मुझे उन कन्याओं में अपनी भगिनी (बहिन) के दर्शन क्यों नहीं हुए? कहीं मेरे अवचेतन के किसी कोने में छुपी वासना उनका मौन अनुमोदन तो नहीं किया करती थी ? क्यों नहीं मैंने उस दौर में अपने अन्तर को टटोलने का प्रयास किया? क्या किसी की क्षणिक वासना की तृप्ति के लिए, किसी का संपूर्ण जीवन कलंकित कर डालने का प्रयास काक्लेि माफ है? ____ मैंतोअपने आपको चारित्रिकवमानसिकधरातलासमाज के स्चतम वर्ग का प्रतिनिधि समझता हूँ। अगर इस सर्वोच्च वर्ग का मानस ऐसा है तो अन्य किससे क्या अपेक्षा की जा सकती है? और सास समाज इसीप्रकार की वृत्तियों से आप्लावित है - यह जानकर आज अपने कोमलमति बालकों को रक्षणहीन, स्वतंत्ररूप से अपने इस समाज में विचरण करने के लिए अकेला छोड़ने की कल्पनामात्र आज मुझे कम्पायमान कर देती है। . एक सभ्य समाज अपने सदस्यों से सभ्य, नैतिक, उदार एक्सचरित्रमय स्नेहिल व्यवहार की अपेक्षा करता है और लड़कपन का उद्दाम प्रवाह इसप्रकार की अपेक्षाओं को बन्धनों का नाम देकर रोंद डालना चाहता है; पर वक्त के साथ-साथ जब वह प्रवाह मन्द पड़ता है व हम शिकारी से मिटकर शिकार बनने की स्थिति में आने लगते हैं; तब हमें सभ्यता, नैतिकता, उदारता, सच्चरित्रता एवं स्नेह के सुरक्षा कवच की आवश्यकता गहराई से महसूस होने लगती है; पर उससमय कोई और लड़कपन की उन्हीं निर्लज, निष्ठुर, उदण्ड, उद्दाम तरंगों पर सवार होकर समाज की उक्त अपेक्षाओं के विरुद्ध विद्रोह का विगुल बजाने लगता है और हम एक अपरिष्कृत समाज के बीच रहने के लिए अभिशप्त बने रहते हैं। ___ क्या हम स्वयं अपनी वृत्तियों को परिमार्जित करके अपने स्वयं के लिए एक बेहतर समाज की रचना नहीं कर सकते; एक ऐसा समाज, जिसमें रहने से हम भयभीत व सशंकित न रहें; हम अपने आपको संरक्षित महसूस करें। अन्तईन्द/11
SR No.002294
Book TitleAantardwand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust
Publication Year2011
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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