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क्या, वाक्य भी पूरा होने का इन्तजार न करते व भाग खड़े होते, अपनी अगली ट्यूशन के लिए; क्योंकि वे अबतक पहले ही लेट हो चुके होते थे ।
बच्चे तो दौड़ जाते थे, पर मैं क्या करता ? यदि कोई और वहाँ न होता तो शायद मैं मन मसोस कर चुप भी रह जाता; ठीक उस बालक की तरह, जो गिर पड़ता है तो उठकर चारों ओर देखता है कि किसी ने देखा तो नहीं और आश्वस्त होने पर चुपचाप धूल झाड़कर चल देता है, मानो कुछ हुआ ही नहीं।
मैं तो इतना सौभाग्यशाली भी नहीं था; क्योंकि मेरी इस दशा का साक्षी बनने के लिए मेरी पत्नी व बहुएँ तो वहाँ मौजूद थीं ही और नौकर-चाकर भी। तब मैं झेंप मिटाने के प्रयास में अपनी पत्नी की ओर मुखातिब होकर बोलना प्रारम्भ ही करता कि 'फिर मालूम है क्या हुआ विमला !' और वह बोल पड़ती “हाँ ! हाँ !! सब पता है, मैं कोई पहली बार सुन रही हूँ क्या ?"
और इसप्रकार अनेकों महत्त्वपूर्ण कार्यों में अपनी सार्थक भूमिका तलाशने के हर प्रयास में पूरी तरह असफल रहने के बाद आज मैं स्वयं भी इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बाध्य हूँ कि मेरा यह जीवन सम्पूर्ण रहा हो या न रहा हो, पर सम्पूर्ण जीवन बीत अवश्य गया है; जीवन बीत गया है और जीवन घट रीत गया है। अबतक तो जीवन का अर्थ भी न समझ सका और जीवन अर्थहीन हो गया ।
मेरे पास अब करने के लिए कुछ भी शेष नहीं, सिवाय दिन गिनने के। अब हर सुबह मुझे सिर्फ एक ही इन्तजार रहता है सांझ होने का, कि कब भोर होने के साथ ही घोंसला छोड़कर उड़ गए पंछी एक बार फिर घर पर लौटें, एक बार फिर आंगन जगमग हो, यौवन का सौरभ महके व शैशव का कलरव चहके। यानि कि सारे परिवारजन दीवान खाने में एकत्र हो एक-दूसरे के साथ अपनी खुशियाँ बांटे, खेलें - खायें, बैठें - बतियायें ।
फि लम्बे-लम्बे इंतजार के बाद कुछ क्षणों के लिए वह पल आते भी हैं
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अन्तर्द्वन्द / 3