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तरंगवती उस जंगली हाथी को मार गिराने के लिए धनुष्य की प्रत्यंचा पर बाण चढाया। निशाना पक्का साधा और उसने धनुष्य की प्रत्यंचा पर चढाया हुआ वह प्राणघातक बाण हाथी की ओर छोडा। उस कालमुहूर्त में उधर से गुजर रहे मेरे साथी को कालयोग से उस बाण ने कटिप्रदेश में बींध डाला । तीखी चोट की पीडा से वह मूच्छित, गति एवं चेष्टाशून्य होकर खुले पंखों की स्थिति में पानी में धबाके की आवाज के साथ गिरा और साथ ही मेरा हृदय भी भग्न हो गया। विद्ध चक्रवाक
उसे शरविद्ध देख पहलेपहल मानसिक दुःख का दबाव झेलने के लिए अशक्त होकर मैं भी मूच्छित हुई और नीचे गिर पड़ी। थोडी देर बाद किसी तरह होश संभला तब शोकाकुल हो बिलखती मैं अश्रुबाढ से छलकते नेत्रों से मेरे पिउ को देखती रही। . उसके कटिप्रदेश में तीर चुभा था; दोनों पंखों का संपुट बिखरकर, चौडा होकर ढल चुका था; हवा के थपेडोंने झुकाकर तोड दी गई, बेलों में उलझा पद्मसा वह पड़ा था। गिरने के आघात के कारण बाहर बह निकले लहू से वह लथपथ था और लाख से लिप्त जल से भीगे स्वर्णकलश-सा दिखाई देता था ।
- लहुलुहान शरीरवाला वह मेरा साथी चंदन के घोल से सिंचित पूजनसामग्री के अशोकपुष्पों के ढेर जैसा लगता था ।
जलप्रवाह के तट पर पडे पलाश-जैसा सुन्दर वर्णवाला वह क्षितिज में डूबते सूर्य-सा दिखता था ।
मेरे प्रियतम को लगा हुआ बाण चोंच से खींच निकालने में मुझे यह भय लग रहा था कि बाण खेंचने से होनेवाली वेदना के, फलस्वरूप शायद वह मर जाए।
पंख फैलाकर मैंने उसे आलिंगन दिया और, 'हा ! हा ! कंथ' बोलती आँखों में आँसू भरकर मैं उसके सामने जाकर उसका मुख देखने लगी।
बाण प्रहार से निष्प्राण बने मेरे प्रियतम की चोंच वेदना से खुल गई थीं।
आँखों के डेले ऊपर चढ गये थे और सभी अंग बिलकुल शिथिल हो गये थे।