________________
तरंगवती
व्याध
उस समय प्राणियों को मारकर अपना जीवननिर्वाह चलाने वाला एक युवान, बलवान व्याध वहाँ आ धमका ।
जंगली फूलों की माला उसने सिर पर लपेटी थी। हाथ में धनुष्यबाण लिये वह कालदंडधृत यमराज-सा लगता था । उसके नंगे पैर खम्भों जैसे थे। पैरों के नाखून भग्न एवं बेढंगे थे । पैरों की उँगलियाँ उभरी हड्डियोंवाली एवं बेमेल थीं । जाधे उभरी थीं। .
सीना बहुत चौडा था। . हाथ बारबार धनुष्य खींचने के अभ्यास के कारण कठोर हो गये थे। दाढीमूछ जरा लाल-सी और बढी हुई थी। चेहरा उग्र था। आँखें पिंग वर्ण की एवं मटमैली थीं। दाढे लम्बी, मूडी हुई, फटी हुई एवं पीलापन लिये मटमैली थीं। कन्धे प्रचंड थे
चमडी हवा के थपेडे एवं धूप की गरमी से काली एवं कर्कश हो गई थी।
वाणी कठोर थी।
पक्षियों की मौत-सा वह यमराज वहाँ आ पहुँचा । उसने कंधे पर तुंबा लटकाया था। उसने डरावना व्याघ्रचर्म पहना था, जो काले काजल से चितकबरा किया हुआ पीतवस्त्र-सा लगता था ।
उस हाथी को देख वह व्याध, जहाँ हाथी पहुँच न पाये ऐसे स्थान में नदी के किनारे उत्पन्न एक प्रचंड तनेवाले विशाल वृक्ष के पास पहुँच गया । कंधे के पास निशाने के लिए धनुष्य टिकाया, दृष्टि तिरछी कर के उस दुष्ट ने