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________________ (४०) ज्ञानी साधु कहते हैं कि जो शुभ और अशुभ से रहित है और जो शुद्ध चेतन भाव है वही हे जीव धर्म है ऐसा तू जान । (४१) जिसका भाव ध्ये और धारणा से रहित होकर स्थिर रहता है वह कर्म से नहीं बंधा जाता । तो जहां आप जाना चाहे वहां जाए (जिस मार्ग पर आप चलना चाहे वही तय करले) (४२) जिनवा ऐसा कहते हैं कि जो आत्मा को नहीं जानता वह अपना ही द्रोह करने वाला है। जो (आत्मा का) ध्यान करता है उसको परमपद की प्राप्ति होती है। (४३) व्रत, तप और नियम करते हुए भी जो आत्मा को नहीं जानता है वह मिथ्या दृष्टि होता है । और वह निर्वाण नहीं प्राप्त करेगा।। (४४) जो व्रत, तप और शील के साथ निर्मल आत्मा को जानता है, सो निश्चित रूप से कर्म क्षय करता है । और शीघ्र निर्वाण प्राप्त करता है। - उपसंहार (४५) हे जीव, यदि तू शीव पद का लाभ चाहता है तो जिनवर ने कही हुई ये अनुप्रेक्षाओं की तू भावना कर ऐसा ज्ञानी साधु कहते हैं ।
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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