SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 20 आसउ संसारहं मुणहिं, कारणु अण्णु ण कोइ । इम जाणेप्पिणु जीव तुहं, अप्पा अप्पउ जोइ ॥१६॥ जो परु जाणइ अप्प परु, जो पर-भाव चएइ । सो संवरु जाणेहि तुहुं, जिणवरु एम भणेइं ॥१७॥ जइ जिय संवरु तुह करहि, तो सिव सुक्ख लहेहि । अण्णु वि सयल परिचयहि, जिणवरु एम भणेहि ॥१८॥ सहजाणंद परिट्ठिया, जे पर-भाव न लिति । ते सुह असुह वि णिज्जरहिं, जिणवरु एम भणंति ॥१९॥ सु सरीरु वि तइलोउ मुणि, अण्णु ण बीयउ कोइ । जहं आधार परट्ठियउ, सो तुहुं अप्पा जोई ॥२०॥ सो दुल्लहु लाहु वि मुणहि, जो परमप्पह लाहु । अण्णु ण दुल्लहु किंपि तुह, णाणी बोलइ साहु ॥२१॥ पुणु पुणु अप्पा झाइ ज्जइ, मण, वय, काय, विसुद्ध । राय रोस वे परिहरिवि, जइ चाहहि सिव सिद्धि ॥२२॥ राय रोस वे परिहरिवि, अप्पा अप्पउ जोइ । जिण - सामिउ एमई भणहिं, सहजि पिउपज्जइ सोइ ॥२३॥
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy