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________________ हर्षवर्धन - गणि-कृतं सदयवत्स-कथानकम् ८५ व्यक्ति उस शव का दाह संस्कार कर देगा उसे वह दो लाख रू. इनाम देगा । उन्होंने इस कार्य को करने का वचन दिया। संयोगवश सदयवत्स ने इस कार्य में एक ब्राह्मण की लडकी जिसे डाकिन शरीर में आती हैं का कार्य किया । चारों मित्र शव को उठाकर श्मशान ले गये तथा बारी-बारी से वहाँ पर पहरा देना तय किया । रात्री के प्रथम प्रहर में जब ब्राह्मण पहरा दे रहा था तब एक स्त्रीने उसे निवेदन किया कि वह उसे अपने पति तक भोजन पहुँचाने में उसकी मदद करे, जिसे फाँसी हो गई थी किन्तु जिसके शरीर में जीवन अभी शेष है । ब्राह्मण झुक गया और स्त्री उसकी पीठ पर सवार हो गई । अन्त में ब्राह्मणने उसे मृतशव का माँस नोचकर खाते हुए पकड़ लिया। इसके पहले कि वह स्त्री भाग जाये ब्राह्मणने उसका हाथ काट डाला । रात्री के दूसरे प्रहर में वेश्य युवक ने भूतों को अपना खाना पकाते हुए देखा। पास में ही बाईस राजकुमारों को बाँधकर रखा हुआ था जिन्हें भोजन के रूप में वे खाने वाले थे। उसने भूतों पर आक्रमण करके उन्हें छुडा दिया । रात्री के तीसरे प्रहर में क्षत्रिय ने एक राक्षस को देखा जो एक राजकुमारी को भगाकर ले जा रहा था । उसने राक्षस को मारकर राजकुमारी को छुडा दिया । रात्री के चोथे प्रहर में शव जिस पर वेताल ने कब्जा कर रखा था खड़ा हो गया तथा उसने सदयवत्स को खेलने के लिये ललकारा। अपनी भुजा को लम्बा करके उसने क्रीडा करने की वस्तु राजमहल से उठाली । सदयवत्स ने उसको द्यूत में हरा दिया और शव का अग्निसंस्कार कर दिया। सदयवत्स ने इनाम की राशि प्राप्त करने के लिये अपने चारों कार्यों का सबूत पेश किया। प्रसंगवश चूडेल उस राज्य की रानी निकली। सदयवत्स के तीनों मित्रों ने उन तीनों कन्याओं से जिन्हें उन्होंने बचाया था, विवाह कर लिया । चारों मित्र बाद में प्रतिष्ठान लोट गये । इसके उपरान्त सदयवत्स प्रतिष्ठान छोडकर उजाड राज्य में गया तथा उसे फिर से बसाकर उस पर शासन करने लगा । सावलिंगा और लीलावती को उसने प्रतिष्ठान व धारा से वहाँ पर बुला लिया। समय के साथ उन दोनों ने एक-एक पुत्र को जन्म दिया जो बड़े होकर सुन्दर व सुशिक्षीत युवा बने। इस बात का पता लगने पर कि उज्जैन को शत्रुओं ने घेर लिया है उसने अपने लडकों को मुकाबला करने के लिये भेजा । उन्होंने शत्रुओं को परास्त कर दिया । कविता का अन्त प्रभुवत्स तथा सदयवत्स के मिलने के साथ होता है ।
SR No.002290
Book TitleSadyavatsa Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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