SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हर्षवर्धन-गणि-कृतं सदयवत्स-कथानकम दिया, थोडा दान किया तथा बचे हुए धन से उसने सावलिंगा के लिये मंहगे कपडे और दूसरी वस्तुए खरीदी । पाँचवें दिन सदयवत्स ने कामसेना का घर छोड़ने की तैयारी की ताकि वह सावलिंगा के साथ किये गए अपने वचन को पुरा कर सके। कामसेना जो कि उसके प्यार में पागल हो गई थी उसे रोकने की कोशिष की । इसी दौरान उसने उसकी ढाल को खींचा । इस प्रकार ढाल खींचने से रनों की चोली जो चोरों ने उसमें छिपाई थी वह नीचे गिर पड़ी। कामसेना ने उसे पास रख लिया। उसे पहनकर वह राजा के पास आने-जाने लगी । एक दिन नगरसेठ ने उसे देख लिया और उसे पता लग गया कामसेना के पास जो चोली है वह वही है जो कुछ समय पूर्व उसके घर से चोरी हुई थी। उसने राजा से इसकी शिकायत की। राजा के काफी पूछने के उपरान्त भी उसने उस व्यक्ति का नाम उसे नहीं बताया जिसने उसे वह उपहार दिया था । राजाने उसे फांसी की सजा दे दी और कहा कि उसे फांसी घर की ओर ले जाय । कामसेना की माँ ने सदयवत्स को छूतशाला से ढूँढ निकाला। उसने जाकर कामसेना को राजा के सिपाहियों को धाराशाही करके बचा लिया । यह सुनकर सोमदत्त वहाँ पहुँचा । सदयवत्स ने उसे अपना संदेश सोमदत्त को पहुँचाने को कहा । सोमदत्त ने उसे राजा से अपने आपको जमानत पर रखकर छुडा लिया। सदयवत्स सावलिंगा से मिलने गया जो उसके वचन के अनुसार पाँचवें दिन नहीं आने पर आत्मदाह की तैयारी कर रही थी। सदयवत्स ने उसे कपडे तथा अन्य सामग्री भेंट की। दूसरे दिन वह फाँसी स्थल पर लौट आया । सदयवत्स ने कहा की उसने कितनी ही चोरियां की है। राजा सदयवत्स के पास वाली तलवार पर अपने हस्ताक्षर देखकर उसकी असलियत पहचान गया। फिर भी सदयवत्स के पराक्रम की परीक्षा लेने के लिये उसने पचास सैनिकों का एक गिरोह उस पर हमला करने के लिये भेजा । नारद द्वारा सूचना पाने पर पाँचो चोरों का गिरोह उसे बचाने के स्थल पर पहुँच गया । और उन्होंने सैनिकों को हरा दिया । राजाने अपनी हार स्वीकार करली तथा पुत्री और जमाई का उष्माभरा स्वागत किया। शीघ्र ही सदयवत्स की मित्रता एक ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वेश्य के साथ हुई। चारों कोई साहसिक कार्य करने के इच्छुक थे। किसी व्यक्ति से यह सुनकर कि तुम्बा गाँव में किसी व्यापारी का पिता के पिता का शव अपने मृत्यु के पश्चात् भी हर दिन श्मशान घाट से उसका शव फिर लौटकर आता है, वह उस व्यापारी के लडके से मिलने उसके गाँव गये जिसने इस बात की घोषणा कर रखी थी कि जो कोई
SR No.002290
Book TitleSadyavatsa Kathanakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy