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अर्थात् श्रीअरिहन्तदेव प्रथमपदे सुस्थित हैं। जैनेतरों में भी कहा जाता है कि -
गुरु गोविन्द दोनूं खड़े, किस के लागू पाय । बलिहारी गुरुदेव की, (जिन) गोविन्द दियो बताय ।।
इस व्यापक वचन की यहाँ रूपान्तर से चरितार्थता होती है। श्रीअरिहन्त पद की आराधना
शुक्लवा से क्यों ? श्रीसिद्धचक्र के नवपद हैं। उनमें अरिहन्त पद पहला है। उसकी आराधना शुक्ल-श्वेत-उज्ज्वल वर्ण से क्यों होती है ?
कारण यह है कि उसमें भिन्न-भिन्न दृष्टिबिन्दुओं से विचारणा करते हुए अनेक विशिष्ट हेतु समाये हैं। उन भिन्न-भिन्न दृष्टिबिन्दुओं द्वारा कितनेक हेतु इस प्रकार के हैं(१) जिस तरह नवपद में अरिहन्तपद पहला ही है उस
भाँति वर्गों में भी शुक्लवर्ण पहला ही है। इसलिये प्रथम अरिहन्त पद की आराधना प्रथम शुक्लवर्ण से ही होती है। यह स्वाभाविक विचारणा युक्तिसंगत है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४६