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कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद्हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने तो श्रीसिद्ध भगवन्तों का श्रीअरिहन्तपद के फलस्वरूप वर्णन किया है। प्राचार्यपद, उपाध्यायपद और साधुपद ये तीन पद जिनेन्द्रभाषित जिनशासन की रक्तता बिना नहीं हो सकते । अन्तिम सम्यग्दर्शनादि चार पद तो श्रीअरिहन्त तीर्थंकर भगवन्तों का ही शासन है। ___ सर्वपदों का जन्म-स्थान श्रीअरिहन्तपद ही है। उसी के अभाव में नवपद महान् में एक पद का भो सद्भाव संभवता नहीं है । इसलिये अरिहन्त परमात्माओं को नवपद में प्रथम स्थान दिया गया है और श्रीनमस्कार महामन्त्र में भी। विश्व में वस्तु-पदार्थ का चाहे जितना अधिक मूल्य होवे तो भी उसकी जानकारी बिना उस अमूल्य वस्तु-पदार्थ का लाभ नहीं ले सकते । इसलिये वस्तु-पदार्थ जान कर उसकी जानकारी कराने वाला विशेष महत्ता प्राप्त करता है। अरिहन्त परमात्मा से सिद्ध भगवन्त विशेष हैं, इतना ही नहीं उनकी शक्ति और पूजनीयता भी अधिक है। इतना होने पर भी जनपद पर उपकार की दृष्टि से अरिहन्त परमात्मा का स्थान ऊँचा है। सिद्धभगवन्तों की पहिचान कराने वाले भी विश्व में अरिहन्त परमात्मा ही हैं । __ ऐसे अनेक कारणों से श्रीअरिहन्त परमात्मा प्रथम पूजनीय हैं। इसलिये उन्हींको प्रथम पद पर स्थापित किया है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४५