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भयों पर विजय प्राप्त की है, इसलिए परमात्मा 'भयविजेता' हैं।
उपर्युक्त सम्पूर्ण विशिष्ट गुणमयता प्राप्त करने के लिए श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा का ध्यान तथा जाप आदि अहर्निश अवश्य करना चाहिए ।
श्री अरिहन्त पद का प्रथम स्थान क्यों ? ___ श्रीअरिहन्त परमात्मा ने आठ कर्मों में से महान् चार घाती कर्मों का क्षय किया है और अब चार अघाती कर्मों का क्षय करना बाकी है।
सिद्ध भगवन्त ने तो (चार घाती और चार अघाती) आठों कर्मों का क्षय किया है । इसलिये सिद्धभगवन्त सर्वथा कर्मविमुक्त हैं । अरिहन्त परमात्मा भी 'गमो सिद्धारणं' कहकर सिद्धभगवन्तों को नमस्कार करते हैं । ऐसा होने पर भी श्रीसिद्धचक्र के नवपद में तथा श्रीनमस्कार महामन्त्र के पंच परमेष्ठी में प्रथम स्थान सिद्धपद को नहीं देकर अरिहन्त पद को क्यों दिया गया है ?
सर्व पदों में श्रीअरिहन्त पद को प्रथम स्थान देने में अनेक हेतु हैं। उसमें मुख्य हेतु श्रीसिद्धपने की प्राप्ति रूप है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४४