SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा ने प्रशस्त राग और अप्रशस्त राग दोनों को मिटाया, उन पर विजय प्राप्त की, इसलिए परमात्मा 'रागविजेता' हैं। (२) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा ने प्रशस्त द्वष और अप्रशस्त द्वेष दोनों को मिटाया अर्थात् उन पर विजय प्राप्त की, इसलिए परमात्मा 'द्वेषविजेता' हैं। (३) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा ने स्पर्शेन्द्रिय, रसने न्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, नेन्द्रिय और श्रवणेन्द्रिय इन पाँचों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की है। इसलिए परमात्मा 'इन्द्रियविजेता' हैं । (४) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा ने क्षुधातृषादि बावीस परीषहों पर विजय प्राप्त की; इसलिए परमात्मा 'परीषहविजेता' हैं। (५) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा स्वयं पर देवों, मनुष्यों और तिर्यंचों द्वारा किए हुए अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्गों-उपद्रवों के होने पर भी मेरु पर्वत के समान निश्चल रहे; इसलिए परमात्मा 'उपसर्गविजेता' हैं। (६) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा ने इहलोकादि सप्त श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४३
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy