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समवसरण भूमि में करोड़ों देवों, मनुष्यों और तिर्यंच प्राणियों का समावेश हो जाता है तथा वे
परस्पर निःसंकोच होकर सुख से ठहरते हैं । (६) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवान की वाणी अर्धमागधी
भाषा में एक योजन प्रमाण समवसरण की भूमि में स्थित देव, मनुष्य तिर्यंच सब प्राणियों को अपनीअपनी भाषा में समान रूप से सुखपूर्वक सुनाई
देती है। (७) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्त के मस्तक के पृष्ठ
भाग में बारह सूर्यबिम्ब की कान्ति से भी अधिक तेजस्वी और मनोहर प्रतीत होने वाला भामण्डल अर्थात् कान्ति के समूह का उद्योत-प्रकाश प्रसारित होता है; जिससे दर्शकगण प्रभु के रूप को सुखपूर्वक देख सकते हैं, अन्यथा अतिशय तेजस्वीपन होने से प्रभु के सामने देखना अति दुर्लभ हो
जाता है। (८) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा जिस-जिस स्थल में
विहार करते हैं उस-उस स्थल पर सर्व दिशाओं में पच्चीस-पच्चीस योजन तथा ऊपर-नीचे साढ़े बारह-साढ़े बारह योजन इस तरह पाँचसौ कोस तक पूर्व में होने वाले ज्वरादि रोगों का विनाश
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३५