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ऋतुनामिन्द्रियार्थानामनुकूलत्वमित्यमी । एकोनविंशतिदिव्याश्चतुस्त्रिंशच्च मीलिताः ॥६४॥
[ श्रीअभिधान चिन्तामणिदेवाधिदेव काण्ड ] जन्म के चार अतिशय (१) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा का देह लोकोत्तर
और अद्भुत रूप वाला, मल और प्रस्वेद से रहित
होता है। (२) श्वासोच्छवास कमलों की सौरभ समान सुगन्धित
होता है। (३) मांस और रुधिर दोनों गाय के दूध समान श्वेत
उज्ज्वल होते हैं। (४) आहार और निहार चर्मचक्षु वाले जीवों [मनुष्या
दिक] के लिए अदृश्य होता है, किन्तु अवधि आदि ज्ञान वाले देख सकते हैं ।
ये चार अतिशय तीर्थंकर भगवन्त के जन्म से ही उत्पन्न होते हैं।
कर्मक्षय के ग्यारह अतिशय (५) श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवान की एक योजन प्रमाण
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३४