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(२६) विभ्रमादिवियुक्तता-- चित्त के विभ्रम आदि दोषों
से रहित । (२७) चित्रकृत्व-- श्रोताओं को नित्य आश्चर्यान्वित
करने वाली। (२८) अद्भुतत्व-- अद्भुतता वाली। (२६) अनतिविलम्बिता-- अतिविलम्ब से रहित । (३०) अनेकजाति वैचित्र्य-- भाँति-भाँति के पदार्थों का
अनेक प्रकार से निरूपण करने वाली। (३१) प्रारोपितविशेषता-- दूसरे के वचनों की अपेक्षा
विशेषता दिखलाने वाली। (३२) सत्त्व प्रधानता-- सत्त्व की मुख्यता वाली । (३३) वर्णपदवाक्यविविक्तता-- वर्ण, पद, वाक्यों के
विवेक से युक्त। (३४) अव्युच्छित्ति- प्रतिपादन करने लायक विषय को
अपूर्ण न रखने वाली। (३५) अखेदित्व- श्रवण करने वाले श्रोताजनों को खेद
___ न हो सके ऐसी। __ इस तरह श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्त की वाणी के पैंतीस गुण प्रतिपादित किये गये हैं । यह प्रभु का वचनातिशय है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३१