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________________ आठ प्रातिहार्य (१) अशोकवृक्ष-जहाँ श्रीतीर्थकर-अरिहन्त भगवन्त का दिव्य समवसरण देवता रचते हैं, वहाँ प्रभु के देहशरीर से बारह गुना ऊँचा अशोकवृक्ष (आसोपालव का वृक्ष) भी देवता रचते हैं । इसके नीचे बैठ कर भगवान देशना देते हैं। (२) सुरपुष्पवृष्टि-देवतागण एक योजन प्रमाण समवसरण की भूमि में नीचे बीटवाले, सुगन्धित और जल-स्थल में उत्पन्न हुए चम्पक आदि पंचरंगी सचित्त पुष्पों की जानु प्रमाण (घुटने तक) वर्षा चारों ओर करते हैं । (३) दिव्यध्वनि-श्री अरिहंत-तीर्थंकर परमात्मा को वाणी को मालकोश राग, वीणा, बाँसुरी आदि के स्वर द्वारा देवता पूरित करते हैं। (४) चामर-सुवर्ण की दांडीवाले रत्नजड़ित चार जोड़ी श्वेत चामर दिव्य समवसरण में श्रीअरिहंततीर्थंकर भगवन्त को देवता वींझते हैं। (५) सिंहासन-श्रीअरिहंत-तीर्थंकर परमात्मा के बैठने के लिए रत्नजड़ित सुवर्णमय सिंहासन समवसरण में देवता रचते हैं। श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२३
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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