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तीर्थकर, तीर्थकर, जिनेश्वर, स्याद्वादी, अभयद, सार्व, सर्वत
तीर्थङ्कर, तीर्थकर, जिनेश्वर, स्याद्वादी, अभयद, सार्व, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, केवली, देवाधिदेव, बोधिद, पुरुषोत्तम, वीतराग और प्राप्त। ___ इस तरह हम जिन्हें अरिहंतादिक अनेक गुणनिष्पन्न नामों से पहचानते हैं, ऐसे श्रीतीर्थंकर अरिहन्त भगवन्तों के आठ प्रातिहार्य और चार महाअतिशय तीन लोक के लोकों को आश्चर्यमुग्ध करते हैं। चौंतीस अतिशय भी मन्त्रमुग्ध करते हैं तथा उनकी पैंतीस गुणयुक्त वाणी सर्वग्राह्य धर्मदेशना मालकौशिकी मुख्य राग में सबको आत्मोद्धारका सच्चा मार्ग दिखलाती है। धर्मतीर्थ प्रवर्त्ताने वाले ऐसे श्रीतीर्थंकर अरिहंत भगवन्त बल-वीर्य को गोपवे बिना अनिद्र और निस्तन्द्र भाव से सतत तीर्थंकरपने व धर्मचक्रवत्तिपने की अद्वितीय अद्भुत महाऋद्धि को भोगते हुए महीतल पर विचरते रहें। . श्रीतीर्थंकर-अरिहंत भगवन्तों के
बारह गुणों को मुख्यता यद्यपि श्रीतीर्थंकर - अरिहंत भगवन्त अनंत गुणों से समलंकृत हैं तथापि उनके बारह गुणों की मुख्यता आगमशास्त्रों में श्रुतकेवली गणधर भगवन्तों ने प्रतिपादित की है । उन बारह गुणों का दिग्दर्शन इस प्रकार है
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२२