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________________ (२) चार पदार्थ लोक में उत्तम हैं। उनमें अरिहंत भगवन्तों का भी स्थान है । 'अरिहंता लोगुत्तमा'-अरिहंत लोकोत्तम हैं । (३) चार शरणभूत में भी अरिहंत भगवन्तों का स्थान है। 'अरिहंते सरणं पव्वज्जामि'-अरिहंतों का शरण स्वीकार करता हूँ। अरिहंत के नाम अरिहंत परमात्मा के अनेक नाम हैं, जिनका प्रतिपादक श्लोक निम्नलिखित है "अर्हन जिनः पारगतस्त्रिकालविद्, क्षीणाष्टकर्मा परमेष्ठयधीश्वरः । शम्भुः स्वयंभूर्भगवान् जगत्प्रभु-, स्तीर्थंकरस्तीर्थकरो जिनेश्वरः । "स्याद्वाद्यभयसार्वाः सर्वज्ञः सर्वदर्शीकेवलिनौ । देवाधिदेवबोधिद-पुरुषोत्तम--वीतरागाप्ताः ।।" अर्हन्, जिन, पारगत, त्रिकालवित्, क्षीणाष्टकर्मा, परमेष्ठी, अधीश्वर, शम्भू, स्वयम्भू, भगवान् जगत्प्रभु, श्रीसिद्ध चक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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