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________________ अरिहंत के विषय में 'विशेषावश्यक भाष्य' में कहते हैं कि "रागद्दोष कषाए य, इन्दियारणीय पंच वि परिसहे । उवसग्गे नामयंता, नमोरिहा तेरण बुच्चति ॥ " राग-द्वेष और चारों कषायों, पाँचों इन्द्रियों तथा परीषों को झुकाने वाले अरिहंत कहलाते हैं । उनको नमस्कार हो । पू० कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज ने भी अर्हन् के सम्बन्ध में 'योगशास्त्र' में कहा है कि "सर्वज्ञो जितरागादि-दोषस्त्रैलोक्यपूजितः । यथास्थितार्थवादी च देवोऽर्हन् परमेश्वरः ॥ " जो सर्वज्ञ हैं, जिन्होंने रागादि दोषों को जीता है, जो त्रैलोक्यपूजित हैं, जो पदार्थ जैसे हैं उनका वैसा ही यथार्थ विवेचन करते हैं, वे अर्हन् परमेश्वर कहलाते हैं । ऐसे अरिहंत परमात्मा मंगलरूप हैं (१) विश्व में चार पदार्थ मंगलरूप में हैं । उनमें अरिहंत भगवन्तों का भी स्थान है । 'अरिहंता मंगलं' - अरिहंत मंगलरूप हैं । श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन - २०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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