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Ex५-४५, ४-५=8 ६x६=५४, ५+४ -- 6 ६७-६३, ६.३= ६ EX८=७२, ७-२==6 ६x६=८१, ८+१=6
६x १० = ६०, 6-0 ६ इस तरह नव का अंक खण्डित नहीं होता, सदा अखण्ड ही रहता है। श्री सिद्धचक्र भगवन्त के नवपद भी अखण्ड ही हैं । उनकी सम्यग् अाराधना कर पाराधक भव्यात्मा सकल कर्म का क्षय करके अखण्ड, अविचल, शाश्वत मोक्षसुख को प्राप्त कर सकता है ।
नवपद का आलम्बन स्वीकार कर के भूतकाल में कई भव्यात्माओं ने मोक्षसुख प्राप्त किया है, वर्तमान काल में महाविदेह क्षेत्रादिक से प्राप्त कर रहे हैं और भविष्य में भी इधर और उधर से अवश्य प्राप्त करेंगे ।
नवपद की नामावली श्री सिद्धचक्र भगवन्त के नवपद हैं, जिनके नाम क्रमशः निम्नलिखित हैं[१] अरिहन्तपद, [२] सिद्धपद, [३] प्राचार्यपद
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६