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बनता। इस विषय में वैद्यक ग्रन्थों में कहा है कि
"वैद्यानां शारदी माता, पिता तु कुसुमाकरः । हेमन्तस्तु सखा प्रोक्तो, हितभुङ मितभुरिपुः ।। अर्थात् शरदऋतु वैद्यों की माता है, बसन्त ऋतु वैद्यों का पिता है। हेमन्त ऋतु वैद्यों का मित्र है तथा हितकर और प्रमाणसर भोजन करने वाला पथ्यवान मानव वैद्यों का रिपु-शत्र कहा गया है । ___ शरद् और बसन्त ऋतु में रोग का वातावरण विशेषरूप में होता है। देह में कफ और पित्त का ऋतुजन्य विकार होता है इसलिये आश्विन एवं चैत्र मास की शाश्वती अोली में श्रीसिद्धचक्र-नवपद की आराधना में आराधक महानुभावों के लिए दिवस में मात्र एक ही बार रूक्ष (रूखा) भोजन रूप महामंगलकारी प्रायम्बिल तप करने का विधान है। प्रायम्बिल नहीं करने वालों को भी रूखा भोजन करना लाभदायक सिद्ध होगा।
नव दिन पर्यन्त रसनेन्द्रिय-विजय 'रसे जीते जितं सर्वम्' रसना का विजेता सभी का विजेता है । पाँचों इन्द्रियों में प्रबल इन्द्रिय रसना (जीभ) है। उस पर विजय प्राप्त करना अति दुष्कर है। आहार
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-७