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________________ नवपदमय श्रीसिद्धचक्र भगवन्त की विशिष्ट आराधना शरद् और बसन्त ऋतु में आश्विन और चैत्र मास में ही सम्यक् रीत्या की जाती है । इन दोनों माहों में ही करने का कारण यह है कि इस समय बाह्य और आन्तरिक अनेक हेतु स्वयमेव एकत्र हो जाते हैं । ___ नवपद की आराधना का काल शरद् और बसन्त ऋतु (आश्विन और चैत्र मास) में बताया गया है। यह समय स्वाभाविक रूप से ही मोह के अनुकूल होता है । इस समय प्रकृति का वातावरण भी अत्यन्त मादक और मोहक रहता है अतः विषयाभिलाषी जीव इन्द्रियों को अपनी तरफ पूरे वेग से आकर्षित करने का यत्न करता है अतः ऐसे समय में इन्द्रियों पर विशेष काबू रखकर और मोह के वश न होकर उन्हें दूर हटाना चाहिए जिससे वे वापिस अपने को न सता सकें। . क्रमशः सर्दी और गर्मी के काल-परिवर्तन के सन्धिरूप आश्विन तथा चैत्र मास अनेक शारीरिक रोगों को जन्म देने वाले होते हैं । प्रायः रोगों की उत्पत्ति में प्रबल कारण अजीर्ण होता है। आहार-निहार की अनियमितता से अजीर्ण होता है। इसलिये आहार और आचरण पर नियन्त्रण रखना नितान्त आवश्यक है। दोनों पर नियन्त्रण रखने वाला व्यक्ति सामान्यतः रोगों का शिकार नहीं श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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