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________________ मंगल प्रवेश किया । पूज्य मुनिराज श्रीमणिप्रभविजयजी म० प्रादि का सम्मिलन हुआ । चतुविध संघ के साथ दोनों जिनमन्दिरों के दर्शनादि करके उपधान कराने वाले शा० ओटरमलजी भूताजी संघवी के घर पर परमपूज्य आचार्य म० सा० पधारे। वहाँ ज्ञानपूजन एवं मंगल प्रवचन होने के पश्चात् संघवीजी की तरफ से एकेक रुपये की तथा गुड़ की दोनों प्रभावना हुई । बाद में पूज्य आ० म० सा० आदि श्री आदिनाथ जैन आराधना भवन में पधारे। जिनमन्दिर में प्रभावना युक्त पंचकल्याणक की पूजा भी संघवीजी ने पढ़ाई | प्रतिदिन प्रवचन- व्याख्यान आदि का कार्यक्रम चालू रहा । * पौष ( मागशर) वद ३ मंगलवार दिनांक ११-१२-८४ को संघवी श्री ओटरमलजी भूताजी की तरफ से उपधान करने वाले भाई-बहिनों के अत्तरवायणा हुए । ( २ ) श्री उपधान तप में प्रवेश पौष ( मागशर) वद ४ बुधवार दिनांक १२-१२-०४ को पूज्यपाद प्राचार्य महाराज सा० की शुभ निश्रा में, नारण समक्ष श्री उपधान तप के प्रथम मुहूर्त में आराधक ६० भाई-बहिनों ने विधिपूर्वक मंगल प्रवेश किया । * पौष ( मागशर) वद ६ शुक्रवार दिनांक १४-१२-८४ को श्री उपधान तप के दूसरे मुहूर्त्त में आराधक २१ भाई-बहिनों ने नाण समक्ष विधिपूर्वक मंगल प्रवेश किया । उपधान करने वालों की कुल संख्या ८१ रही । उपधान तप में भी अट्ठमादि की विविध तपश्चर्या चलती रही । ( 115 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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