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________________ (१५) शाम को सूर्यास्त के पेश्तर पडिलेहण कर आठ थुई से देव वंदन करना। तदनंतर मंदिर में दर्शन कर आरती उतारना । (१६) देवसिक प्रतिक्रमण करना । (१७) रात को श्रीपाल महाराजा का रास बांचना । (१८) एक प्रहर रात्रि व्यतीत होने के बाद संथारा पोरिसी सूत्र पढ़कर नवकार मंत्र स्मरण करते २ संथारे पर सो जाना । (१६) प्रतिदिन की क्रिया सोने के पेश्तर संपूर्ण कर देना । उपरोक्त लिखे मुताबिक नवों दिन क्रिया करने की है । पहला दिन-अरिहंत पद । गुण १२ (वर्ण-सपे.द, आयंबिल चांवल का करना) जाप-ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं । नवकारवाली २० । काउसग्ग १२ लोगस्स का। स्वस्तिक १२ । खमासमण १२ । प्रदक्षिणा १२ । ॥ दोहा ॥ अरिहंत पद ध्यातो थको, दव्वह गुण पज्जायरे । भेद छेद करी आतमा, अरिहंत रूपी थायरे । वीर जिनेसर उपदीशे, सांभलजो चित लाइरे। आतम ध्याने आतमा, ऋद्धि मिले सवि आईरे ॥वीर०॥ १. श्री अशोकवृक्ष प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । २. श्री पुष्पवृष्टि प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ३. श्री दिव्यध्वनि प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ( 5 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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