SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४. श्री चामरयुगल प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ५. श्री स्वर्ण सिंहासन प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः ।। ६. श्री भामंडल प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ७. श्री दुन्दुभी प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ८. श्री छत्र त्रय प्रातिहार्य विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ६. श्री लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान स्वरूप ज्ञानातिशय विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । १०. श्री सुरासुर गण नायक कृत समवसरण प्रातिहार्यादि विशिष्ट पूजातिशय विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः । ११. श्री सर्व भाषानुगामी सकल संशयोच्छेदक पंच त्रिशद गुणालंकृत वचनातिशय विभूषिताय श्रीमदहते नमः। . १२. श्री स्वपरापाय-निवारकापाया-पगमातिशय-विभूषिताय श्रीमदर्हते नमः। आखिर में एक खमासमण देकर प्रविधि प्राशातना का मिच्छामि दुक्कडं देना। दूसरा दिन-सिद्ध पद । गुण ८ (वर्ण-लाल, आयंबिल गेहूँ का करना) जाप-ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं । नवकारवाली २० । काउसग्ग ८ लोगस्स का। स्वस्तिक ८ । खमासमण ८ । प्रदक्षिणा ८ । ॥दोहा॥ रूपातीत स्वभाव जे, केवल दसण नाणीरे । ते ध्याता निज आतमा, होय सिद्ध गुणखाणीरे ॥ वीर० ॥ ( 6 )
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy