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(३) सूर्योदय के करीब पडिलेहन करना । (४) पाठ थुइयों से देववंदन करना । (५) श्री सिद्धचक्रजी के यंत्र की वासक्षेप से पूजा करना।
(६) अनुकूलता अनुसार नौ मंदिरों में जाकर चैत्यवंदन करना या एक ही मंदिर में नौ चैत्यवंदन करना।
(७) गुरु वंदन कर, श्रीपाल महाराजा के रास का व्याख्यान श्रवण करके पच्चक्खाण करना।
(८) स्नान करके श्री जिनेश्वर भगवान की स्नात्र व अष्ट प्रकारी पूजा करना।
() जिस पद के जितने गुण हों उतने ही खमासमण, उतनी ही प्रदक्षिणा और उतने ही स्वस्तिक करके उन पर फल और नैवेद्य यथाशक्ति चढ़ाना।
(१०) जिस दिन जिस पद की आराधना हो उस पद की बीस नवकारवाली गिनना ।
(११) दोपहर को आठ थुइयों से देववंदन करना।
(१२) आयंबिल करने को बैठने के पेश्तर पच्चक्खाण पार कर फिर आयंबिल करना।
(१३) आयंबिल कर लेने पर उसी स्थान पर तिविहार का पच्चक्खाण करना।
(१४) आयंबिल कर लेने के कुछ समय बाद यदि पानी पीना हो तो चैत्यवंदन करके पानी पीना। जिन्होंने ठाम चउविहार का पच्चक्खाण किया हो उन्हें चैत्यवंदन करने की जरूरत नहीं।