________________
श्रेणिक महाराजा यादि उत्तम पुरुष भी प्रशंसनीय बने ।
(७) श्री सिद्धचक्र - नवपदजी के सातवें श्रीज्ञानपद की आराधना करके धन्या शीलमती सती महाबुद्धि रूपी धन वाली हुई ।
(८) श्रीसिद्धचक्र - नवपदजी के आठवें श्रीचारित्र पद का शिवकुमार के भव में आदर पूर्वक आराधन करके श्रीजम्बूकुमार ने सरलता से मोक्षपद प्राप्त किया ।
( ९ ) श्रीसिद्धचक्र - नवपदजी के नवमे श्रीतप पद की उल्लास पूर्वक आराधना करके महासती वीरमती ने सर्वोत्तम मोक्ष फल प्राप्त किया ।
हे भव्यजीवो ! अधिक क्या कहें ! इस श्रीसिद्धचक्र - नवपदजी की आराधना करने वाले आराधक श्रीतीर्थंकरनाम कर्म भी सहजता से उपार्जित करते हैं ।। १३-२४ ।।
तप करने योग्य कौन है ?
विधेयं श्रावकैः शान्तैः श्राविकाभिस्तथाविधं ।
शान्तोऽल्पनिद्रोऽल्पाहारो, निष्कामो निःकषायकः ॥ १ ॥
"
धीरोऽन्यनिन्दारहितो, कर्मक्षयार्थीप्रायेण,
गुरुशुश्रूषणे रतः । राग-द्वेषविवजितः ॥ २॥
श्रीसिद्धचक्र - नथपदस्वरूपदर्शन- ३३१