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कात्तिक आदि ने उत्तम स्वामीपना प्राप्त किया है।
(२) श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी के दूसरे श्रीसिद्धपद का आराधन करके पाँचों पाण्डवों ने (युधिष्ठिर, अर्जुन, भीमसेन, सहदेव और नकुल) कुन्तीमाता के साथ सिद्धाचल (महातीर्थ) पर ध्यान धरते हुए परमपद को प्राप्त किया है।
(३) नास्तिक और पापनिरत ऐसा प्रदेशी राजा भी देवता हुआ, वह इस श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी पैकी तीसरे श्रीप्राचार्य पद का महान् उपकार है ।
(४) श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी के चौथे श्रीउपाध्याय पद को आराधते हुए धन्य आत्माएँ श्रीसिंहगिरि महाराज के शिष्योंवत् सूत्र का अध्ययन करते हैं। (वे वय में लघु होने पर भी ज्ञान में वृद्ध ऐसे महाज्ञानी श्रीवज्रस्वामी महाराज को उपाध्याय रूपे स्वीकार कर, विनय-बहुमान पूर्वक उनके पास श्रुत का अभ्यास करते थे )।
(५) श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी के पाँचवें श्रीसाधु पद की आराधना करके रोहिणी स्त्री ने सुख प्राप्त किया और इसकी विराधना कर रुक्मिणी स्त्री ने दुःख प्राप्त किया।
(६) श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी के छठे श्रीदर्शन पद से जिन्होंने निर्मलपना प्राप्त किया है ऐसे कृष्ण वासुदेव और
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३३०