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________________ वाले मनुष्य महान्, ऋद्धिवान्, रूप सौभाग्य से सुशोभित ऐसे देवता, विद्याधर या राजा होते हैं ।। १-४ ।। . रोग तथा भयादिक की शान्ति अस्य प्रभावतो घोरं, विषं च विषमज्वरम् । दुष्टं कुष्टं क्षयं क्षिप्रं, प्रशाम्यति न संशयः ॥ ५ ॥ तावद् विपन्नदी घोरा, दुस्तरा यावदङ्गिभिः । नाप्यते सिद्धचक्रस्य, प्रसादविशदा तरी ॥ ६ ॥ बद्धा रुद्धा नरास्तावत्, तिष्ठन्ति क्लेशतिनः । यावत् स्मरन्ति नो सिद्ध-चक्रस्य विहितादराः ॥ ७ ॥ एतत् तपोविधायिन्यो, योषितोऽपि विशेषतः । वन्ध्या-निन्द्वादिदोषारणां, प्रयच्छन्ति जलाञ्जलिम् ॥८॥ वैफल्यं बालवैधव्यं, दुर्भगत्व कुरूपताम् । दुर्भगात्वं च दासीत्वं, लभन्ते न कदाचन ॥ ६ ॥ श्रीसिद्धचक्र के प्रभाव से भयंकर विष, विषम ज्वर, दुष्ट कोढ़ तथा क्षय रोग का नाश होता है, इसमें संशय का कोई कारण नहीं है। जब तक श्रीसिद्धचक्रजी की कृपा रूपी विशद नौका नहीं प्राप्त होती है तभी तक जीवों को विपत्ति रूपी भयंकर नदी दुस्तर होती है । बाँधे गए, रोके गए तथा क्लेश में पड़े हुए प्राणी भी तभी तक दुःखी श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३२६
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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